#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*१३.बिपरीत ज्ञानी को अंग*
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*मनहर छन्द -*
*'एक ब्रह्म' मुख सौं बनाइ करि कहत है,*
*अंतहकरन तौ बीकारनि सौं भरयौ है ।*
*जैसैं ठग गोबर सौं कूपौ भरि राखत है,*
*सेर पांच घृत लै कैं ऊपर ज्यौं करयौ है ॥*
*जैसे कोऊ भांडे माँहिं प्याज कौं छिंपाइ राखे,*
*चीथरा कपूर कौ ले मुख बांधि धरयौ है ।*
*सुन्दर कहत ऐसैं ज्ञानी है जगत मांहि,*
*तिनकौ तौ देखि करि मेंरौ मन डरयौ है ॥१॥*
*धूर्त ज्ञानियों से डरना चाहिए* : ये उपदेशक मुख से भले ही कहते रहें - 'एक ब्रह्म द्वितीयं नास्ति' ; परन्तु इनके हृदय में(अन्तः करण) में विविध विकार भरे हुए हैं ।
जैसे कोई धूर्त(ठग) दूसरों को ठगने के लिये किसी पात्र(कूपा) में गोबर भर कर ऊपर पाँच चार सेर घी रख दे और उसे घी से भरा हुआ पात्र बतावे ।
या जैसे कोई दूसरा ठग किसी पात्र में नीचे प्याज भर कर उस पर दूसरा द्रव्य रख कर उस पर कपूर की गाँठ बाँध दे कि कपूर कि गन्ध से प्याज की दुर्गन्ध शान्त हो जाय ।
महाराज *श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इस जगत् में ऐसे ही(धूर्त) ज्ञानी बहुत मिलते हैं । उनको देखकर मेरा मन भय मानता रहता है ॥१॥
(क्रमशः)
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