सोमवार, 1 दिसंबर 2014

= “पं. विं. त.” ७/८ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पञ्चविंशति तरंग” ७/८)*
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*संत देश देशांतर में*
केतिक पूरब दक्षिण पश्‍चिम, 
केतिक उत्तर देश निवासी ।
केतिक मारु मेवाड़ रु मालव, 
नागर चाल हडोति जु वासी ॥ 
केतिक संत पंजाब हरियाणहु, 
केते रमे गुजरात उपासी ।
केते ढुंढाड़ नराणे दिपे पुनि, 
दास गरीब सबै सुखराशी ॥७॥ 
कुछ संत पूर्व दिशा में तो कुछ पश्‍चिम में, कोई उत्तर में तो कोई दक्षिण में पधार गये । कितने ही संत मरुधर, मेवाड़, मालव, नागर प्रदेश हाड़ोती, पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात प्रान्त में जाकर निवास करने लगे । कुछ साधु ढूंढार क्षेत्र और नारायणपुर में ही रहकर भजन करते रहे । गरीबदासजी समय - समय पर सभी के सुख पूछते रहते ॥७॥ 
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*श्री दादूजी के पांच धाम*
संत नये गुरुगादि गरीबहिं, 
भाव रहे उर इष्ट सदा ही ।
साधु शुची गुणज्ञान धरें सब, 
दें वरदान सबै हरषाही ।
पंथ प्रधान सुधाम नरायण, 
भयहरणां गिरि तीर्थ रहा ही ।
साँभर अम्बपुरी जु कल्याणहिं, 
पंचहु धाम सुतीर्थ कहा ही ॥८॥ 
गुरुगद्दी पर विराजित श्रीगरीबदास जी के प्रति सभी साधु संत श्रद्धा रखते थे । इष्टदेव परब्रह्म की उपासना में दृढ़ सभी साधुओं के भाव शुचिता, साधुता ज्ञानगरिमा से परिपूर्ण थे । भक्त सेवकों को वरदान देकर वे हर्षित करते रहते । श्रीदादूजी के पंथ अनुयायियों के लिये प्रधान गुरुधाम नारायणपुर माना जाने लगा । भयहरण गिरि तीर्थरूप मुक्तिधाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ । साँभर परिचयधाम, आमेर, लीलाधाम और कल्याणपुरी साधना - धाम के नाम से विख्यात हुए । इस तरह श्रीदादूपंथ के पाँच तीर्थ, भक्ति ज्ञान, वैराग्य कल्याण और मुक्ति के प्रेरक रूप में उजागर हुए ॥८॥
(क्रमशः)

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