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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षड्विंशति तरंग” १२/१३)*
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*वैश्य कन्या बालकी से बालक ~*
वैश्य कन्या तन मेटि कियो नर,
सात घरां धरि रूप जिमाये ।
मालहिं लौंग दई द्विजनारिहु,
संतति पुत्र उमा तब पाये ॥
अम्बपुरी दशंवेद तपे गुरु,
दास गरीबजु शिष्य कहाये ।
रज्जब आदिक ले उपदेशहु,
भूपति पाँव परे मन भाये ॥१२॥
साँभर में ही एक वैश्यकन्या को वचन सिद्धि से बालक बना दिया था । एक साथ सात घरों में निमन्त्रण पाकर सात रूप धर कर भोजन किया । उमा नामक द्विज नारी को लौंग कालीमिर्च और माला का प्रसाद देकर दो पुत्र और दो पुत्री का वरदान दिया । तत्पश्चात् श्रीदादूजी आमेर पधार गये । वहाँ चौदह वर्ष तक तपे । गरीबदासजी आदि अनेक शिष्य वहाँ शरण में आये । श्री रज्जबजी ने भी वही उपदेश लिया था । राजा भगवानदास श्रीदादूजी के चरणों में नतमस्तक हुआ । उनके पुत्र राजामानसिंह ने अतीव गुरु सेवा की ॥१२॥
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*सीकरी और जोगी सीता आदि प्रसंग ~*
सीकरि शाह अकबर को गुरु,
तेजहिं तख्त दिखावत भारी ।
तालहिं तीर जलेबि जिमावत,
श्रीप्रकृती तहँ सेवन धारी ॥
अम्बपुरी लगि बाँह पसारत,
डूबत ज्हाज रु शाहु उबारी ।
तुर्क संगोति जु खोल दिखावत,
जोगि शिला उड़ि आप उतारी ॥१३॥
तत्पश्चात सीकरी शहर में बादशाह अकबर को ज्ञानोपदेश दिया । नूर तख्त(दिव्य तेजोमय) आसन का दर्शन कराया । सीकरी से आमेर पधारते समय मार्ग में दौसा ग्राम के तालाब पर संतों को जलेबी का प्रसाद जिमाया । श्रीदादूजी की प्रार्थना पर श्रीहरि की प्रेरणा से प्रकृति जलेबी प्रसाद लेकर आई । आमेर धाम पर विराजे हुए श्री दादू जी ने सागर में डूबती जहाज को बाहु पसार कर उबार लिया । एक तुर्क ने छलछद्म से प्रसाद भेंट में वस्त्र से ढकी हुई मांस भरी थाली प्रस्तुत की, श्रीदादूजी ने उसे बदल कर सात्विक सादा बना दिया । एक विद्वेषी जोगी ने आमेर में अहंकार प्रदर्शित किया तब शिष्य टीलाजी ने उसे शिला सहित आकाश में ऊँधा लटका दिया, किन्तु दयालु संत श्रीदादूजी ने उसे क्षमा कर दिया और पहाड़ी के ऊपर से शिला सहित वापिस नीचे उतरवा दिया ॥१३॥
(क्रमशः)
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