शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

= “ष. विं. त.” २६/३० =

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स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षड्विंशति तरंग” २६/३०)*
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*मनोहर छन्द*
गुरु कियो चातुर्मास, सोलह शिष्य संग पास,
गूलर सुथान मध्य कथा गुणगान ही ।
संतगुण सागर की, गुरुतें आयसु धरि,
साधु संत पूछि पूछि, सब सत्य मान ही ।
चन्द ॠतु पाँच शून्य, काती सुदी आठें पुण्य,
ग्रन्थ लिख्यो थान मध्य, गुरु यश ठान ही ।
चन्द ॠतु - ॠतु चंद, अषाढ़ सुदि तीन छंद,
पूरण भयहु ग्रन्थ, माधवदास बखान ही ॥२६॥ 
यह संतगुण सागर - ग्रन्थ गूलर - ग्राम में रचा गया था । जब गुरुदेव श्रीदादूजी सोलह शिष्यों के साथ वहाँ चातुर्मास प्रसंग में विराजे थे । तब श्रीगुरुदेव की आज्ञा लेकर, साधु संतों से श्रीदादूजी के चरित प्रसंगों को पूछ - पूछ कर तथ्यान्वेषण के साथ इस ग्रन्थ की रचना प्रारम्भ की गई थी । इसमें वर्णित सभी प्रसंग घटनायें सर्वथा सत्य है । यह ग्रन्थ विक्रम संवत् १६५० कार्तिक शुक्ला अष्टमी से लिखना प्रारंभ करके संवत् १६६० आषाढ़ शुक्ला तृतीया को सम्पूर्ण किया गया ॥२६॥ 
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*दोहा*
संत गुण सागर ग्रन्थ यह, माधव रचित बखान ।
बरसी प्रथम सुनाव ही, पाट गरीब सुजान ॥२७॥ 
माधवदास स्वरचित इस ग्रन्थ का व्याख्यान श्रीगुरुदेव की प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि पर स्वामी श्री गरीबदासजी के सम्मुख संत सभा में सुनाकर कृतकृत्य हुआ ॥२७॥
नमो नमो गुरुदेवजु, नमो साधु सब सन्त ।
भक्ति सम्पूरण दीजिये, तिरि हैं जीव अनन्त ॥२८॥ 
ग्रन्थ संपूर्णता पर मैं माधवदास गुरुदेव श्री दादूदयाल महाराज को सादर नमस्कार करता हूँ, सभी साधुसंतों को भी प्रणाम करता हूँ । आप सभी मुझे सम्पूर्ण भक्ति का आशीर्वाद दीजिये । जिस भक्ति के प्रभाव से जगत् के अनन्तजीव तिर गये हैं, और तिर रहे हैं ॥२८॥
दादूराम उचारिये, यह गुरुमंत्र अबूझ ।
सत्यराम सब जानिये, मारग मोक्षहिं सूझ ॥२९॥ 
अपने कल्याण के इच्छुक भक्त जन ‘‘दादूराम - दादूराम’’ - शब्द का उच्चारण करते रहें, यह अबूझ गुरुमंत्र है । सत्यराम - शब्द मोक्ष मार्ग को दिखाने वाला परम प्रदीप है, इसके परम तत्व को पहिचानें ॥२९॥
दादूराम दादूराम दादूराम जपिये, 
जाँहि विधि राखे राम ताँहि विधि रहिये
सत्यराम सत्यराम सत्यराम कहिये, 
भक्तिभाव उर धरि, भव पार तिरिये ॥३०॥ 
दादूराम - मंत्र को जपते हुए भगवत् - शरण हो जाइये । वह प्रभु हमें जिस प्रकार भी रखना चाहे, वैसे रहिये । अपने व्यवहार एवं सभी कर्म ईश्‍वर समर्पित करते रहिये । इसी में कल्याण है । सत्यराम - शब्द कहते हुए भक्ति - भावना हृदय में धरिये, इसी से सहजतया भवसागर से पार हो जाएंगे ॥३०॥ 
इति माधवदास विरचित: श्री संतगुण सागरामृत ग्रन्थ: सम्पूर्ण
दादूराम - सत्यराम
॥ छब्बीसवीं तरंग के साथ ग्रन्थ सम्पूर्ण ॥२६
(क्रमशः)

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