बुधवार, 3 दिसंबर 2014

= “पं. विं. त.” १२/१६ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पञ्चविंशति तरंग” १२/१६)*
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*मनोहर छन्द* 
*तपोवन में १०० शिष्य तपस्या किये* 
ब्रह्म मुनि नारायण बालदास छीतर दास, 
गुणीराम रामदास द्वारिकाजू दास है ॥ 
मनोहर नेताराम, जीतराम गोविन्दास, 
दुरगा जू देवादास, भैंरू धीरादास है । 
बोहित दो बीरादास, जगदीश हरिदास, 
माधो काणी बाजिंद रु तोलाजू संतोष है ॥ 
तुलसी हु कान्हड़राम, नर्बद नाथूराम, 
ईश्‍वर जु संतदास गोविन्द टीकमदास है ॥१२॥ 
तत्त्ववेता ठाकुरदास, आल्हण रु सिन्धुदास, 
बनमाली परशुराम भगवानदास जू । 
परमानन्द कृष्णदास, दयाल अरु व्यासदास, 
जोधा सांगा टोडर हु सारंग उजासजू । 
चतुरा सुमेरु खाकी, चेतन दृढ़दास भाषी, 
मुरारि सुजानदास जानो केवलदासजू । 
चरण रु गंगादास पंचानन सांवलदास, 
जंगीदास चूहड़जू संत पांचूदासजु ॥१३॥ 
विष्णूदास माधोदास जग्गाजी धरमदास, 
चत्तरदास लांबरोहू नृसिंह दोऊ जान ही । 
दोउ जगन्नाथ मोहन ध्यानदास भीखूदास, 
मांगा बीसा चतुरदास मदन सुजान ही । 
धर्मदास कलाराम लालदास नागाराम, 
दूधाराम चेतन हु, ठाकुरदास मान ही ॥ 
ताऊजी मुरारीदास बद्रीदास श्यामदास, 
हांफाजी हु रामदत्त केशोजी प्रमान ही ॥१४॥ 
हेमदास खेमदास डूंगजी सुरमदास, 
दामोदर कमलनयन बिसरामजी । 
गुणीदास भावूदास, भजन उजास खास । 
दादूगुरु शत शिष्य, जपें दादूरामजी । 
भजन करत नित, रहत इकंत व्रत, 
रात दिन एकतार हरि गुरु नाम जी । 
माधो कहे अभय होत, मिलत अखंड ज्योत, 
जीवन मुकति भइ, दादूजी के धाम जी ॥१५॥ 
*दोहा* 
स्वामी के शत शिष्य ये, देव मुनी सम जान, 
भयहरणां गिरि वन तपे, माधव करे बखान ॥१६॥ 
ब्रह्मदासजी, मुनिजी, नारायणदासजी, बालदासजी, छीतरदासजी, गुणीरामजी, रामदासजी, द्वारकादासजी, मनोहरदासजी, नेतारामजी, जीतरामजी, गोविन्ददासजी, दुर्गादासजी, देवादासजी, भैंरुदासजी, धीरादासजी, दोनों बोहितदासजी, बीरादासजी, जगदीशजी, हरिदासजी, माधो काणी जी, बाजिंदजी, तोलारामजी, संतोषदासजी, तुलसीरामजी, कान्हहड़रामजी, नर्बदजी, नाथूरामजी, ईश्‍वरदासजी, संतदासजी, गोविन्दरामजी, टीकमदासजी.... 
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तत्ववेत्ता, ठाकुरदासजी, आल्हणरामजी, सिन्धुदासजी, वनमालीजी, परशुरामजी, भगवानदासजी, परमानन्दजी, कृष्णदासजी, दयालदासजी, व्यासदासजी, जोधारामजी, सांगारामजी, टोडरमलजी, सारंगदासजी, चतुरादासजी, सुमेरजी, खाकीदासजी, चेतनरामजी, दृढदासजी, मुरारिजी, सुजानदासजी, केवलरामजी, चरणदासजी, गंगादासजी, पंचाननजी, सांवलदासजी, जंगीदासजी, चूहडरामजी, पाँचूदासजी... 
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विष्णुदासजी, माधोदासजी, जग्गाजी, धरमदासजी, चतरदासजी, दोनों नृसिंहदासजी, दोनों जगन्नाथजी, मोहनजी, ध्यानदासजी, भीखूदासजी, मांगारामजी, बीसाजी, चतुरदासजी, मदनदासजी, धर्मदासजी, कलारामजी, लालदासजी, नागारामजी, दूधारामजी, चेतनदासजी, ठाकुरदासजी, ताऊजी मुरारिदासजी, बद्रीदासजी, श्यामदासजी, हाँफाजी, रामदत्तजी, केशोजी... 
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हेमदासजी, खेमदासजी, डूंगजी, सुरमदासजी, दामोदरजी, कमलनयनजी, विसरामजी, गुणीदासजी, भावूदासजी - 
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ये सौ शिष्य संत एकांत तपोवन में रहकर निरन्तर हरि - गुरु नाम का स्मरण करते हुए अभय पद को प्राप्त हो गए । उनकी जीव ज्योति अखंड ब्रह्म ज्योति में समा गई । माधवदास वर्णन करते हैं - ये संत श्रीदादूजी के मुक्तिधाम में भजन करते हुए जीवनमुक्त हो गए ॥१२-१६॥ 
(क्रमशः) 

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