सोमवार, 8 दिसंबर 2014

= “ष. विं. त.” ५/७ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षड्विंशति तरंग” ५/७)*
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*दोहा*
*संत गुण सागरामृत ग्रथ की महिमा ~*
स्वामी आज्ञा पाय तब, माधव करे बखान ।
श्री गुरु दादू चरित यह, सुनि हैं साधु सुजान ॥५॥ 
संत चरित के रत्नमय, गुण सागर यह ग्रन्थ ।
सारभूत संक्षेप में, माधव भाखत पंथ ॥६॥ 
गुरु दादू लीला सरस, दश इन्दव के छंद ।
भक्त कुमुद प्रमुदित धरें, संत सुयश मकरंद ॥७॥ 
संत भक्त सेवकों की सभा में श्रीवाणीजी की कथा तथा शब्दकीर्तन के पश्‍चात् स्वामी श्री गरीबदासजी की आज्ञा लेकर माधवदास ने स्वरचित श्री दादूचरित्र ग्रन्थ(संतगुणसागरामृत) का सारांश में व्याख्यान किया । सभी सभासद, सुजान साधु अतीव श्रद्धा और तन्मयता से उसे सुनने लगे ।
माधवदास बोले - हे संत भक्त सेवकों ! मेरे द्वारा गुरुश्रद्धा में रचित यह संतगुणसागरामृत ग्रन्थ गुरुदेव श्रीदादूजी के लीलामय चरित्रों का रत्नाकार है । जिस प्रकार सागर रत्नाकार है, उसी प्रकार यह ग्रन्थ भी दादूजी के भक्ति ज्ञान वैराग्य - परक उपदेशों, लीलाओं, कृपाओं, साधना पद्धतियों तथा जीवोद्धारक चरित मालाओं रूपी रतनों से परिपूर्ण है । 
इस सम्पूर्ण ग्रन्थ का सार रूप मैं आपके समक्ष दश इन्दव छन्दों से(इन्दु समान पदों से) प्रस्तुत भक्ति रस को कुमुद के समान धारण करके अवश्य ही प्रमुदित होंगे । संत श्रीदादूजी का सुयश आपके हृदयों में मकरन्द की भाँति सुवासित होगा ॥५-७॥
(क्रमशः)

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