सोमवार, 8 दिसंबर 2014

*त्यौंद प्रसंग से आगे*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*त्यौंद प्रसंग से आगे*
त्यौंद प्रसंग से आगे ~
एक दिन त्यौंद में भगवानदास नामक व्यक्ति ने दादूजी से पू़छा - स्वामिन् ! ऐसा तीर्थ कौनसा है ? जिसके जल में स्नान करने से तन, मन बुद्धि और ज्ञानेंन्द्रियां पवित्र हो जायें ? तब दादूजी ने उसे कहा -
दादू राम नाम जलं कृत्वा, स्नानं सदा जितः
तन मन आतम निर्मलं, पंच भू पापं गतः ॥६०॥
(स्मरण अंग २)
उक्त वचन सुनकर भगवान्दास मौन रहे और फिर दादूजी के शिष्य भी हो गये । ये सौ शिष्यों में हैं ।
.
फिर पास बैठे हुये पीपा वंशी परमानन्द ने पू़छा - स्वामिन् ! उत्तम साधक मायिक प्रपंच से मुक्त कैसे होते है ? तब दादूजी ने कहा -
दादू उत्तम इन्द्री निग्रहं, मुच्यते माया मनः ।
परम पुरष पुरातनं, चिन्तते सदा तनः ॥६१॥
(स्मरण अंग २)
उक्त साखी का अर्थ समझ परमानन्द मौन रहे और दादूजी के शिष्य भी हो गये ।
.
फिर पास बैठे हुये दूबरिया नामक व्यक्ति ने पू़छा - भगवन् ! मायिक प्रपंच तथा माया की प्रीति हृदय से कब दूर होती है ? तब दादूजी ने कहा
ब्रह्म भक्ति जब ऊपजे, तब मया भक्ति विलाय ।
दादू निर्मल मल गया, ज्यों रवि तिमिर नशाय ॥६४॥
(स्मरण अंग २)
दूबरिया अपने प्रश्‍न का उत्तर सुनकर मौन रहा ।
.
तब पास में बैठे हुये कृष्ण नामक व्यक्ति ने पू़छा - स्वामिन् ! परमेश्वर का ध्यान चित्त में क्यों नहीं रहता है ? तब दादूजी ने कहा -
दादू विषय विकार से, जब लग मन राता ।
तब लग चित्त न आवहीं, त्रिभुवन पति दाता ॥६५॥
(स्मरण अंग २)
कृष्ण अपने प्रश्‍न का उत्तर सुनकर संतुष्ट हुये और दादूजी के शिष्य हो गये । वे १००में हैं ।
.
त्यौंद में ही एक दयालदास बंगाली ने दादूजी से पू़छा - अमर जीवन कैसे प्राप्त हो ? तब दादूजी ने कहा -
निर्विकार निज नाम ले, जीवन इहै उपाय ।
दादू कृत्रिम काल है, ताके निकट न जाये ॥७०॥
(स्मरण अंग २)
उक्त साखी सुनकर दयालदास संतुष्ट हुआ और दादूजी का शिष्य हो गया ।
.
ये दादूजी के सौ शिष्यों में हैं । फिर पास बैठे हुये देवेन्द्र नामक व्यक्ति ने पू़छा - भगवान् ! भजनानन्द प्राप्ति का उपाय बताइये । तब दादूजी ने कहा -
मन पवना गहि सुरति से, दादू पावे स्वाद ।
सुमिरण मांहीं सुख घणा, छाड़ि देहु बकवाद ॥७१॥
(स्मरण अंग २)
देवन्द्र अपने प्रश्‍न का उत्तर सुनकर प्रसन्न हुये और दादूजी के शिष्य हो गये । ये सौ शिष्यों में हैं ।
.
फिर पास बैठे हुये वन माली नामक व्यक्ति ने पू़छा - स्वामिन्! भजन के लिये घर अच्छा रहता है या वन ? तब दादूजी ने कहा -
ना घर भला न वन भला, जहां नहीं निज नाम ।
दादू उनमनि मन रहै, भला तो सोई ठाम ।
उक्त उत्तर सुनकर वन माली दादूजी के शिष्य हो गये थे । ये ५२ में हैं और सांभर रहे थे ।
.
फिर व्यास ने पू़छा - भगवन् ! ब्रह्म के साक्षात्कार की बातें तो बहुत सुनते हैं, पर वह कैसे होता है ? सो बताइये । तब दादूजी ने कहा -
दादू निर्गुण नामं मई, हृदय भाव प्रवर्तन ।
भरमं करमं किल्विषं, माया मोहं कंपितं ॥७८॥
कालं जालं सोचितं, भयानक यम किंकरं ।
हरषं मुदितं सुद्गुरुं, दादू अविगत दर्शनं ॥७९॥
(स्मरण अंग २)
उक्त उत्तर सुनकर व्यास दादूजी के शिष्य हो गये । ये सौ में हैं ।
.
फिर सुखानन्द ने पू़छा - भगवन् ! हरि स्मरण जन्य सुख कितना होता है ? तब दादूजी ने कहा -
दादू राम नाम सबको कहै, कहिबे बहुत विवेक ।
एक अनेकों फिर मिलैं, एक समाना एक ॥८१॥
दादू अपणी अपणी हद्द में, सबको लेवे नाउं ।
जे लागे बे हद्द से, तिनकी मैं बलि जाउं ॥८२॥
(स्मरण अंग २)
जोधा अपने प्रश्‍न का उत्तर सुनकर संतुष्ट हुये और दादूजी के शिष्य भी हो गये । ये सौ शिष्यों में हैं ।
.
फिर माताओं में बैठी हुई रमा नामक एक वृद्धा माता ने पू़छा - स्वामिन् ! राम नाम स्मरण के समान भगवत् प्राप्ति का कोई दूसरा साधन भी है क्या ? तब दादूजी ने कहा -
कौण पटतर दीजिये, दूजा नाहीं कोय ।
राम सरीखा राम है, सुमिरे ही सुख होय ॥८३॥
अपनी जाणैं आप गति, और न जाणे कोय ।
सुमिर सुमिर रस पीजिये, दादू आनन्द होय ॥८४॥
(स्मरण अंग २)
उक्त उत्तर सुनकर रमा माताजी अति हर्षित हुई थी । त्यौंद के सत्संग उत्सव में दादूजी के ३८ शिष्य भी थे । बहुत ही सुन्दर सत्संग हुआ था । त्यौंद से मोरड़ा के भक्तों के आग्रह से मोरड़ा पधारे वहां सत्संग चलने लगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें