#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सबको बैठे पंथ सिर, रहे बटाऊ होइ ।
जे आये ते जाहिंगे, इस मारग सब कोइ ॥
बेग बटाऊ पंथ सिर, अब विलम्ब न कीजे ।
दादू बैठा क्या करे, राम जप लीजे ॥
संझ्या चलै उतावला, बटाऊ वन-खंड मांहि ।
बरियां नांहीं ढील की, दादू बेगि घर जांहि ॥
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जनम अमोल अकारथ जात रे |
सुमरण करौ कभउं नहि हरी कौ, ज्यौ लौ नहि छरत गात रे ||
ऐ सबु संगी दिवस चार के, धन दारा सूत पित मात रे |
(च्यार - चार; दारा- स्त्री; सुत - पुत्र)
बिछुरे मिलन बहुरि नह ह्वै हो, ज्यौं तरवर छिन पात रे ||
(तरवर - वृक्ष; छिन - नष्ट हो जाना)
तौ कैसे हरी नाम लहुगे, गर गटकै कफ-सित बात रे |
(लहुगे - लोगे)
काल-कराल भ्रमत फंदक ज्यूं, करत अचानौ घाट रे ||
(कराल - विकराल; फंदक - शिकारी, फंदा या जाल लगाने वाला )
चेते नहि अलपु मति मूरखी, छाडी अम्रित विषु खाय रे |
कहि 'रविदास' आस ताज औरे, स्त्री गोपालह रंग राच रे ||
(संत गुरु रविदास जी की वाणी, पद ६७)
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Your precious life is being wasted in vain. You have not remembered God even when your body has already weakened. Wealth, wife, son, father and mother are your companion for certain period. As a leaf falling from tree cannot be affixed to tree again, one may not get this precious human birth every time. If you delay in practising God’s Name then all bodily ills will plague you and will prevent you from taking His Name. The Lord of Death is very cruel and dangerous and can strike you suddenly at any time. He roams like a hunter and strikes very suddenly. You are a senseless fool who eats poison of passion and lust and and do not become conscious and leave the nectar of Hari Naam. Saint Satguru Ravidas Ji says that you should dye yourself in the colour of Lord’s Name and leave averything else.
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तुम्हारा अमूल्य जन्म व्यर्थ बीता जा रहा है | अपने शरीर के क्षीण होने तक तुमने कभी भी परमात्मा का सुमिरन नहीं किया | धन, स्त्री, पुत्र, पिता और माता - ये सभी केवल चार दिनों के साथी है | जिस तरह वृक्ष से टूटा हुआ पत्ता फिर से वृक्ष से नहीं जुड़ सकता है, उसी तरह एक बार बिछुड़ने के बाद इन सभी से फिर मिलन संभव नहीं | यदि परमात्मा का नाम लेने में देर की तो फिर अंत में जब तुम पर कफ, पित्त और वात का प्रकोप होगा तो तुम कैसे परमात्मा का नाम ले पायोगे ? काल बहुत ही विकराल है | शिकारी के सामान यह घूमता रहता है और अचानक प्रहार करता है | तू मतिमंद मूर्ख है जो चेतता नहीं और नामरूपी अमृत को छोड़ विषय-वासनारूपी विष खाता है | परम संत सतगुरु रविदास जी कहतें हैं कि अन्य सभी की आशा त्याग कर तू परमात्मा के रंग में रंग जा |
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