#daduji
दादू घट कस्तूँरी मृग के, भ्रमत फिरै उदास ।
अन्तरगति जाणै नहीं, तातैं सूंघै घास ॥
सब घट में गोविन्द है, संग रहै हरि पास ।
कस्तूँरी मृग में बसै, सूंघत डोलै घास ॥
दादू जीव न जानै राम को, राम जीव के पास ।
गुरु के शब्दों बाहिरा, तातैं फिरै उदास ॥
दादू जा कारण जग ढूंढिया, सो तो घट ही मांहि ।
मैं तैं पड़दा भरम का, तातैं जानत नांहि ॥

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