#daduji
दादू देखु दयालु को, सकल रह्या भरपूर ।
रोम रोम में रमि रह्या, तूँ जनि जानै दूर ॥
दादू देखु दयालु को, बाहरि भीतरि सोइ ।
सब दिसि देखौं पीव को, दूसर नाहीं कोइ ॥
दादू देखु दयालु को, सनमुख सांई सार ।
जीधरि देखौं नैंन भरि, तीधरि सिरजनहार ॥
दादू देखु दयालु को, रोक रह्या सब ठौर ।
घट घट मेरा सांइयाँ, तूँ जनि जानै और ॥
दादू देखु दयालु को, सकल रह्या भरपूर ।
रोम रोम में रमि रह्या, तूँ जनि जानै दूर ॥
दादू देखु दयालु को, बाहरि भीतरि सोइ ।
सब दिसि देखौं पीव को, दूसर नाहीं कोइ ॥
दादू देखु दयालु को, सनमुख सांई सार ।
जीधरि देखौं नैंन भरि, तीधरि सिरजनहार ॥
दादू देखु दयालु को, रोक रह्या सब ठौर ।
घट घट मेरा सांइयाँ, तूँ जनि जानै और ॥

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