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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध) राग कल्याण ३(गायन समय संध्या ६ से ९ रात्रि)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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९६. उपदेश चेतावनी । त्रिताल ~
http://youtu.be/kmiIrU75Ick
मन मेरे कछु भी चेत गँवार !
पीछे फिर पछतावेगा रे,
आवे न दूजी बार ॥टेक॥
काहे रे मन भूल्यो फिरत है,
काया सोच विचार ।
जिन पंथों चलना है तुझ को,
सोई पंथ सँवार ॥१॥
आगै बाट बिषम जो मन रे,
जिमि खांडे की धार ।
दादू दास सांई सौं सूत कर,
कूड़े काम निवार ॥२॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव अपने मन को उपलक्षण करके उपदेश करते हैं कि हे हमारे मन ! अब मनुष्य देह पाकर, इसमें कुछ तो सावधान हो, राम - नाम का स्मरण कर । अब सत्य - कर्मों को मत भूल । हे गँवार ! विषय - वासनाओं के प्रेमी ! पीछे अन्तकाल में पश्चात्ताप करेगा अथवा चौरासी में जाकर पछतावेगा । इस मनुष्य शरीर में तेरा दुबारा आना राम - भजन के बिना असम्भव है ।
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हे मन ! सतगुरु के उपदेश को विसार कर विषयों में क्यों भटकता है ? कुछ तो अन्तःकरण में परमेश्वर के नाम - स्मरण का विचार कर । जिस मार्ग से, परमेश्वर के पास तुझे चलना है, अब उस मार्ग को अपना ले । निष्काम निर्वासनिक अनन्य - भक्ति रूप मार्ग को धारण कर ले और नहीं तो
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आगे परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग कठिन है, क्योंकि काम आदि बड़े - बड़े लुटेरे हैं, वे चलने नहीं देंगे । परमार्थ के मार्ग पर चलना, खांडे की धार पर चलने के समान है अथवा खांडे की धार जैसा तीक्ष्ण है । मुक्त - पुरुष कहते हैं कि हे मन ! अब तूँ निषिद्ध पाप आदि कर्मों का त्याग करके परमेश्वर के नाम - स्मरण में अपने आपको लगा ले । इसी में तेरा कल्याण है ।
(क्रमशः)
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