सोमवार, 5 जनवरी 2015

*रघुनाथ मंदिर नारायणा प्रसंग*

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*रघुनाथ मंदिर नारायणा प्रसंग*
मोरड़ा से नारायणा पधारने पर राज नारायणसिंह ने रघुनाथ मन्दिर में ठहराया और सत्संग के पश्चात् अकेला दादूजी के पास इस इच्छा से बैठा ही रहा कि मुझे अब आगे क्या कर्तव्य है ।
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राजा की इच्छा को जानकर दादूजी ने राजा को ३७३ का पद -
३७३. सतगुरु तथा नाम महिमा । त्रिताल
सतगुरु चरणां मस्तक धरणां,
राम नाम कहि दुस्तर तिरणां ॥टेक॥
अठ सिधि नव निधि सहजैं पावै,
अमर अभै पद सुख में आवै ॥१॥
भक्ति मुक्ति बैकुंठा जाइ,
अमर लोक फल लेवै आइ ॥२॥
परम पदारथ मंगल चार,
साहिब के सब भरे भंडार ॥३॥
नूर तेज है ज्योति अपार,
दादू राता सिरजनहार ॥४॥
इससे उपदेश किया था और राजा ने भी उक्त उपदेश के अनुसार ही आगे किया था ।

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