गुरुवार, 29 जनवरी 2015

= १२० =

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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१२०. स्तुति । गजताल ~
अरे मेरे समर्थ साहिब रे अल्लह ! नूर तुम्हारा ॥टेक॥
सब दिशि देवै, सब दिश लेवै, सब दिशि वार न पार, रे अल्लह ॥१॥
सब दिशि कर्ता, सब दिशि हर्ता, सब दिशि तारणहार, रे अल्लह ॥२॥
सब दिशि वक्ता, सब दिशि श्रोता, सब दिशि देखणहार, रे अल्लह ॥३॥
तूँ है तैसा, कहिये ऐसा, दादू आनन्द होइ, रे अल्लह ॥ ४ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें परमेश्‍वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे हमारे समर्थ परमेश्‍वर साहिब ! आपका स्वरूप ही हमारा आधार है ।
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आप ही सब दिशाओं में चींटी से लेकर हाथी पर्यन्त, जिसकी जो खुराक है, सब जीवों को पूर रहे हो और सब दिशाओं में आप अपने भक्तों की, भाव भक्ति रूप सेवा को ग्रहण कर रहे हो । हे परमेश्‍वर ! आपका स्वरूप सब दिशाओं में परिपूर्ण हो रहा है । कोई आपका वार - पार नहीं पाते ।
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सब दिशाओं में आप ही कर्ता रूप होकर सब कुछ कर रहे हो और सब दिशाओं में आप ही असुर लोगों के, उनके कर्मानुसार, उनके प्राण हर रहे हो । आप ही सब दिशाओं में अपने भक्तों को तार रहे हो ।
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सब दिशाओं में आप ही वक्ता रूप से सत् शास्त्रों की शिक्षा दे रहे हो और सब दिशाओं में आप अपने आत्मीय जनों की प्रार्थना सुन रहे हो । आप ही सर्व दिशाओं में दृष्टा रूप बन करके प्राणियों के शुभ, अशुभ कर्मों को देख रहे हो ।
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हे नाथ ! जैसे आप हो, वैसा ही आप हमको कहिये, तब हमारे अन्तःकरण में आनन्द होगा ।
(क्रमशः)

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