शनिवार, 31 जनवरी 2015

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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१२२. विनती । मल्लिका मोद ताल ~
पीवजी सेती नेह नवेला, 
अति मीठा मोहि भावे रे ।
निशदिन देखौं बाट तुम्हारी, 
कब मेरे घर आवे रे ॥टेक॥
आइ बनी है साहिब सेती, 
तिस बिन तिल क्यों जावे रे ।
दासी कों दर्शन हरि दीजे, 
अब क्यौं आप छिपावे रे ॥१॥
तिल तिल देखूं साहिब मेरा, 
त्यों त्यों आनन्द अंग न मावे रे ।
दादू ऊपर दया मया करि, 
कब नैनहुँ नैन मिलावे रे ॥२ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें परमेश्‍वर के दर्शनार्थ विनती कर रहे हैं कि हे परमेश्‍वर! आपसे हमारा प्रेम नित्य नया बढ़ रहा है । आपके दर्शन हमको अति प्रिय लगते हैं । रात - दिन आपके दर्शनों की बाट देख रहे हैं । हमारे हृदयरूपी घर में आप कब प्रकट होंगे ?
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आपसे ही हमारी सब बात बनेगी । आपके बिना अब तो एक पल भी उम्र का बीतना कठिन हो रहा है । हम विरहीजन दासों को, हे हरि ! आकर दर्शन दीजिये । अब आप अपने स्वरूप को हमसे क्यों छिपा रखा है ?
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हे हमारे साहिब ! क्षण - क्षण में आपका दर्शन करें, तब हमारे हृदय में आपके दर्शनों का आनन्दमय सुख समा नहीं सकता । अब हम विरहीजनों पर दया करके आप अपने नेत्र हमारे नेत्रों से मिलाइये, अर्थात् आमने सामने करिये ।
(क्रमशः)

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