शनिवार, 31 जनवरी 2015

#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= निजगुरु का परिचय देना = 
दादूजी लोधीरामजी का उक्त प्रश्न सुनकर, परमानन्द युक्त होकर बोले -
जोगी जान जान जन जीवे, 
बिन ही मनसा मनहि विचारे, बिन रसना रस पीवे || टेक ||
बिन ही लोचन निरख नयन बिन, श्रवण रहित सुन सोई | 
ऐसे आपै रहै एक रस, दूसर नाम न होई || १ ||
बिन ही मारग चले चरण बिन, निश्चल बैठा जाई | 
बिन ही काया मिले परस्पर, ज्यों जल जल हि समाई || २ || 
बिन ही ठाहर आसण पूरे, बिन कर बेन बजावे | 
बिन ही पाऊं नाचे निशि दिन, बिन जिह्वा गुण गावे || ३ || 
सब गुण रहिता सकल वियापी, बिन इन्द्री रस भोगी | 
दादू ऐसा गुरु हमारा, आप निरंजन जोगी || ४ || 

लोधीराम - उन गुरु ने क्या किया है ? 

दादूजी - दादू सद्गुरु सहज में, किया बहुत उपकार | 
निर्धन धनवत कर लिया, गुरु मिलया दातार || 

लोधीरामजी - तुम सद्गुरु से कैसे मिले ? 

दादूजी - सद्गुरु से सहजैं मिल्या, लिया कंठ लगाय | 
दया भई दयाल की, तब दीपक दिया जगाय ||
गुरुदेव ने कृपाकर के मेरे ह्रदय में ज्ञानरूप दीपक जगा दिया है और निर्गुण भक्ति करने का उपदेश देकर यहां ही अन्तर्धान हो गये हैं | 
(क्रमशः)

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