#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= निजगुरु का परिचय देना =
दादूजी लोधीरामजी का उक्त प्रश्न सुनकर, परमानन्द युक्त होकर बोले -
जोगी जान जान जन जीवे,
बिन ही मनसा मनहि विचारे, बिन रसना रस पीवे || टेक ||
बिन ही लोचन निरख नयन बिन, श्रवण रहित सुन सोई |
ऐसे आपै रहै एक रस, दूसर नाम न होई || १ ||
बिन ही मारग चले चरण बिन, निश्चल बैठा जाई |
बिन ही काया मिले परस्पर, ज्यों जल जल हि समाई || २ ||
बिन ही ठाहर आसण पूरे, बिन कर बेन बजावे |
बिन ही पाऊं नाचे निशि दिन, बिन जिह्वा गुण गावे || ३ ||
सब गुण रहिता सकल वियापी, बिन इन्द्री रस भोगी |
दादू ऐसा गुरु हमारा, आप निरंजन जोगी || ४ ||
लोधीराम - उन गुरु ने क्या किया है ?
दादूजी - दादू सद्गुरु सहज में, किया बहुत उपकार |
निर्धन धनवत कर लिया, गुरु मिलया दातार ||
लोधीरामजी - तुम सद्गुरु से कैसे मिले ?
दादूजी - सद्गुरु से सहजैं मिल्या, लिया कंठ लगाय |
दया भई दयाल की, तब दीपक दिया जगाय ||
गुरुदेव ने कृपाकर के मेरे ह्रदय में ज्ञानरूप दीपक जगा दिया है और निर्गुण भक्ति करने का उपदेश देकर यहां ही अन्तर्धान हो गये हैं |
(क्रमशः)

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