सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

= १२२ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू जब लग जिय लागैं नहीं, प्रेम प्रीति के सेल ।
तब लग पिव क्यों पाइये, नहिं बाजीगर का खेल ॥
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Shree Ram Sharnam ~
एक महात्मा जी ने कहा -जीव ईश्वर का ही अंश है जो गुण ईश्वर में हैं वे जीव में भी मौजूद हैं ! तो सुनने वालों में से एक ने पूछा -बाबा ईश्वर तो सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है पर जीव तो अल्पज्ञ और अल्प सामर्थ्य वाला फिर इस भिन्नता के रहते एकता कैसी ?
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यह सुनकर महात्मा जी ने मुस्करा कर उस व्यक्ति से कहा - एक लोटा गंगा जल ले आओ ! वह व्यक्ति लोटे में गंगाजल जल भर लाया ! फिर महात्मा जी ने उस व्यक्ति से पूछा - अच्छा यह बताओ कि गंगा के जल और इस लोटे के जल में कोई अंतर तो नहीं है ? वह व्यक्ति बोला - बिल्कुल नही ! महात्मा जी ने कहा - देखो सामने गंगा जल में नावें चल रही हैं; एक नाव इस लोटे के जल में चलाओ ! 
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यह सुनकर वह व्यक्ति भौंचका रह गया और महात्मा जी का मुंह ताकने लगा ! फिर उसने साहस करके कहा - बाबा लोटा तो छोटा है और इसमें थोड़ा ही जल है इतने में भला नाव कैसे चलेगी भला ! महात्मा जी ने गंभीर होकर कहा - जीव एक छोटे दायरे में सीमा-बद्ध होने के कारण लोटे के जल के समान अल्पज्ञ और अशक्त बना हुआ है ! यदि यह जल फिर गंगा में लौटा दिया जाये तो उस पर नाव चलने लगेगी !
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इसी प्रकार यदि जीव अपनी संकीर्णता के बंधन काट कर महान बन जाये तो उसे ईश्वर जैसी सर्वज्ञता और शक्ति सहज ही प्राप्त हो सकती है !

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