#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू कहै जे तैं किया सो ह्वै रह्या,
जे तूं करै सो होइ ।
करण करावण एक तूं, दूजा नांहीं कोइ ॥
==============
॥श्री हरि:॥ ~ शिक्षाप्रद पत्र
सप्रेम राम-राम । आपका पत्र मिला । आपने कई शंकाएँ की है, उनका उत्तर क्रमश: इस प्रकार है -
(१) गरीबों को भगवान् ही बनाते हैं, यह आपका लिखना ठीक है । जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भगवान् भुगतातें हैं एवं उनकी सेवा करने के लिये भी कहते हैं । भगवान् ने ही गरीब को बनाया है । इसका मतलब यह नहीं है कि वे बेचारे कष्ट पाते रहें एवं उनकी सेवा भी न की जाय । सेवा का काम अपने लोगों के जिम्मे है । जैसे कोई चोरी-डकैती या बदमाशी करता है तो पुलिस द्वारा गवर्नमेंट उसे पर्याप्त मात्रा में दण्ड दिलवाती है ।
अगर उस दोषी के कहीं घाव हो जाता है तो मलहम-पट्टी के लिये लिये भी उचित व्यवस्था रहती है । मार-पीटकर ही नहीं छोड़ दिया जाता । इसी प्रकार भगवान् उन्हें दण्ड भुगताने के लिये गरीबी देते हैं । उनकी सेवा का काम दूसरों के जिम्मे है । जो सेवा करता है, उसे इसका अच्छा फल मिलता है, अत: सेवा करने वाले को तो कर्तव्य समझकर गरीबों कि सेवा ही करनी चाहिये ।
(२) आपने मित्र भाव रखने वाले एक व्यक्ति का उदाहरण दिया । आपने उसे दूकान करवायी और वह सब रूपया लेकर चंपत हो गया, सो मालूम किया । इस घटना से आपके मन जो यह धारणा हो गयी है कि किसी के साथ भला करने पर भी बुरा ही होता है,यह ठीक नहीं है । आपके साथ कोई बुराई का व्यवहार करे तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिये । आपको तो उसके साथ अच्छे-से-अच्छा व्यवहार करना चाहिये । आपको अपने अच्छे कर्मका फल मिलेगा एवं बुरा कर्म करने वाले को पाप भोगना पड़ेगा ।
'जो तोकूँ काँटा बुवै ताहि बोय तूँ फूल ।'
आपको इस उपर्युक्त पद्यवाक्य के अनुसार ही करना चाहिये । साथ ही धोखा देनेवालों से सावधान रहना चाहिये । कोई काँटा बने तो बने, आपको तो फूल ही बनना चाहिये ।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें