रविवार, 15 फ़रवरी 2015

= १५७ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, सबद ऊपने पास ।
तहाँ एक एकांत है, जहाँ ज्योति प्रकास ॥
दादू काया अंतर पाइया, अनहद बैन बजाइ ।
सहजैं आप लखाइया, शून्य मंडल में जाइ ॥
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साभार : @Kripa Shankar B ~
संतो, मगन भया मन मेरा ----
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भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी की ध्वनी से मधुर और कुछ भी नहीं है|
यह निरंतर हर मनुष्य में बज रही है| बस सुनने वाला प्रेमी चाहिए|
जिस धरातल पर यह ध्वनी बजती है वह मनुष्य के भौतिक, प्राणिक और मानसिक चैतन्य से परे है|
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वह एक वास्तविकता है जिसकी महिमा में हमारे शास्त्र भरे पड़े हैं| सूक्ष्म देहस्थ मेरुदंड और मस्तिष्क में स्थित सुषुम्ना नाड़ी में ही वह बांसुरी है जिसमें प्रभुजी निरंतर प्राण फूँक रहे हैं, जिसकी प्रतिक्रिया से साँसें चल रही हैं और ह्रदय धडक रहा है|
सातों चक्र ही उस बांसुरी के छिद्र हैं| सहस्रार में तो साक्षात प्रभुजी स्वयं बिराजमान हैं|
मानव देह में त्रिभंग मुद्रा में उन बिहारी जी की छवि अनुपम है|
जीवन और मृत्यु का वहाँ कोई महत्व नहीं है| जहाँ वे हैं वहाँ अन्य कुछ भी नहीं हो सकता| वे ही सब कुछ हैं और सब कुछ उन्हीं में है|
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प्रणव ध्वनी ही उनकी बांसुरी की आवाज है| एक मधुमक्खी मधु चखने के पश्चात पुष्पों की गंध से और आकर्षित नहीं होती वैसे ही उस बांसुरी की ध्वनी सुनने के पश्चात वासनओं का आकर्षण क्षीण होने लगता है| उस ध्वनी को निरंतर सुनने का प्रयास करो| बाकि फिर कभी|
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आगे का मार्ग प्रभुजी स्वयं दिखाते हैं, शर्त यही है कि आप उन से प्रेम करो| भगवान के पास सब कुछ है पर एक चीज का उनके पास निरंतर अभाव है जिसके लिए वे भी तरसते हैं, और वह है आपका प्रेम| जिसने आपको सब कुछ दिया क्या आप उन्हें अपना प्रेम नहीं दे सकते?
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सब का कल्याण हो|
ॐ शिव| ॐ ॐ ॐ |

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