रविवार, 15 फ़रवरी 2015

= १५८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू शब्द बाण गुरु साध के, दूर दिसन्तरि जाइ ।
जिहि लागे सो ऊबरे, सूते लिये जगाइ ॥
सतगुरु शब्द मुख सौं कह्या, क्या नेड़े क्या दूर ।
दादू सिष श्रवणहुँ सुण्या, सुमिरण लागा सूर ॥
शब्द दूध घृत राम रस, मथि करि काढ़ै कोइ ।
दादू गुरु गोविन्द बिन, घट घट समझि न होइ ॥
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मनुष्य जन्म के बाद से आनंद की तलाश में भटकता रहता है, लेकिन जीवन से संतुष्ट नहीं हो पाता | उसे जीवन तो मिलता है, लेकिन जीवन जीने का ढंग नहीं सिखाया जाता | जीवन जीने की रीति और ढंग सिखाने के लिए गुरु ही परमात्मा के प्रतिनिधि होते हैं | गुरु ही हमें जीवन दर्शन देते हैं, जिसके माध्यम से हम अपनी क्षमताओं को निखारते हैं | गुरु अपने विचारों और उपदेशों से सामाजिक और आध्यात्मिक क्रांति करते है | गुरु के वचनों और संदेशों की पवित्र गंगा में डूबकर मनुष्य का अंतःकरण शुचिता के आलोक से भर जाता है |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, भारत

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