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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ तृतीय विन्दु ~*
*= कांकरिया तालाब से घर जाना =*
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लोधीरामजी ने कहा - अच्छा अब घर चलो ।
तब दादूजी उस स्थान को प्रणाम करते हुये बोले -
*प्रीतम के पग परसिये, मुझ देखन का चाव ।*
*तहाँ ले शीश नवाइये, जहाँ धरे थे पाँव ॥*
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फिर घर गये किंतु प्रतिदिन स्नानादि क्रिया से निवृत्त होकर जहाँ वृद्ध भगवान् का दर्शन हुआ था, उस स्थान को प्रणाम करने जाते थे । श्रद्धा भक्ति पूर्वक प्रणाम करते थे । जब तक अहमदाबाद में रहे तब तक यह नियम उनका निरंतर चलता रहा था । वृद्ध भगवान् के दर्शन के पश्चात् दादूजी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही थी, उसमें महान् परिवर्तन हो गया था । अब उनकी मनोवृत्ति निरंतर परमात्मा परायण रहने लगी थी । इस परिवर्तन को देखकर हवा बहिन, भुवा रामाबाई और काका आनन्दराम प्रसन्न हुये थे । कारण, ये तीनों ही अच्छे सत्संगी और भगवद् भक्त थे । अब दादूजी की स्थिति ऐसी हो गई थी -
"कभी तो गावे करुणा सार ।
कभी विरह कर करे पुकार ॥
कभी बीनती हरि को धारे ।
कभी शब्द से मन को मारे ॥५१॥
चेतनजीकृत दादू जन्म लीला विश्राम २ ।
कभी करुणा रस के श्रेष्ठ पद गाते थे । कभी वियोग व्यथा से व्यथित होकर दर्शनार्थ प्रभु से प्रार्थना करते थे । कभी विनय करके हृदय में हरि का ध्यान धरते थे । कभी शब्द वाणों से मन को मार कर प्रभु के स्वरूप में लगाते थे । कांकरिया तालाब पर जहां वृद्ध भगवान् का दर्शन हुआ था । उस स्थान पर जाकर प्रणाम करते थे । तब प्रभु मिलन का स्मरण करके वियोग व्यथा से व्यथित हो जाते थे । लघु अवस्था में उनकी ऐसी दिनचर्या देखकर सज्जन लोग अति हर्षित होते थे । दादूजी का वचन व्यवहार भी सर्व को सुखद होता था । वे अप्रिय कार्य तो किसी का करते ही नहीं थे ।
(क्रमशः)

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