#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जल में गगन, गगन में जल है,*
*पुनि वै गगन निरालं ।*
*ब्रह्म जीव इहिं विधि रहै,*
*ऐसा भेद विचारं ॥*
*ज्यों दर्पण में मुख देखिये,*
*पानी में प्रतिबिम्ब ।*
*ऐसे आत्मराम है,*
*दादू सब ही संग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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जैसे स्याही में सब जगह सब तरह की लिपियाँ विद्यमान हैं, सोने में सब जगह सब तरह के गहने, मूर्तियां और उनके अवयव विद्यमान रहते हैं, ऐसे ही उस परमात्म तत्त्व में सब जगह अनंत वस्तुयें, व्यक्ति, और उनके अवयव विद्यमान रहते हैं ।
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इसलिए वे सम्पूर्ण ब्रह्मांडों को अपने एक अंश से व्याप्त करके स्थित हैं। वे परमात्मा स्वयम विभाग-रहित होने पर भी अलग-अलग प्राणियों में विभक्त की तरह प्रतीत होते हैं । वे सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करते हैं, पर उनको कोई प्रकाशित नहीं कर सकता । वे ज्ञान-स्वरूप, प्रकाश-स्वरूप,परमात्मा सबके हृदय में नित्य-निरंतर विद्यमान हैं ।
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ऐसे वे जानने योग्य एक परमात्मा ही, रजो-गुण की प्रधानता स्वीकार करके ब्रह्मा-रूप से सबको उत्पन्न करते हैं, सत्व-गुण की प्रधानता स्वीकार करके विष्णु-रूप से सबका भरण-पोषण करते हैं और तमोगुण की प्रधानता स्वीकार करके शिव-रूप से सबका संहार करते हैं । ऐसा करने पर भी वे सम्पूर्ण गुणों से रहित और निर्लिप्त रहते हैं ।

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