#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू कछब अपने करि लिये, मन इन्द्रिय निज ठौर ।
नाम निरंजन लागि रहु, प्राणी परिहर और ॥
मन के मतै सब कोई खेलै, गुरु मुख बिरला कोई ।
दादू मन की मानैं नहीं, सतगुरु का सिष सोइ ॥
सब जीवों को मन ठगै, मन को बिरला कोइ ।
दादू गुरु के ज्ञान सौं, सांई सन्मुख होइ ॥
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साभार : पँ. शिवप्रसाद त्रिपाठी 'आचार्य' ~
सुदामा --->
सुदामा का अर्थ है इन्द्रियों का दमन, निग्रह करने वाला । इन्द्रियों के निग्रह के बिना न तो विद्या मिलती है और न ही फलदायी होती है । विद्यार्थी के लिए इन्द्रिय दमन बड़ा आवश्यक है। सुदामा के साथ मित्रता करने वाला अर्थात् इन्द्रियोँ को बश मे रखने वाला ही सरस्वती की उपासना कर सकता है । सुदामा उस संयमी व्यक्ति का प्रतीक है जो परमात्मा को प्राप्त करना चाहता है ।
.... परमात्मा के दर्शन के लिए संयम के बिना विद्या प्राप्त नही सो सकती. संयम के बिना जीवन दिव्य नही बन पाता । संयम और वैराग्य को बढ़ाना चाहिए । त्याग किये गये विषय की इच्छा कभी नही करना चाहिए ।
.... सुदामा के साथ मित्रता करने से द्वारिका नाथ मिलेँगे । सुदामा सर्वोत्तम संयम का साक्षात् रुप है । मन को अंकुश मेँ रखना चाहिए ।
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संदीपनी ---->
जो आत्मतत्व का संदीपन अर्थात ज्ञान करा सके वही संदीपनी है, वही गुरु है । सद्गुरु बाहर से कुछ भी नहीँ लाते बल्कि जो भीतर है उसी को जाग्रत करते हैं ।
विद्याध्ययन के बहाने भगवान श्रीकृष्ण यह संदेश मानवोँ को देते है कि बिना गुरु के बिना मानव जीवन सफल नहीं होता ।
भगवान ने सुदामा - संयम के साथ मित्रता करके सदाचारपूर्ण जीवन जीकर मानव को सदाचार और संयम पूर्वक जीवन जीने का संदेश दिया ।
आज का विद्यार्थी भी यदि सुदामा-संयम से मैत्री करके विद्याभ्यास करे तो उसकी विद्या सफल हो सकती है ...

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