#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू मार्यां बिन मानै नहीं, यहु मन हरि की आन ।
ज्ञान खड़ग गुरुदेव का, ता संगि सदा सुजान ॥
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परमात्मा ने नरकों का सृजन क्यों किया है ?
हम सन्त-महात्माओं द्वारा वर्णित नरकों का हाल पढ़ते हैं तो रूह काँप जाती है । मन में एक सवाल उठता है कि यदि परमात्मा दयालु है तो उसने नरकों की इतनी कठोर यातनाएँ क्यों रखी हैं ?
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आप देखते हैं कि दुर्घटना होने पर डॉक्टर टूटी हुई हड्डियों को आरी से चीर देते हैं, वे दो-दो, तीन-तीन महीने का पलस्तर लगा देते हैं, जिससे रोगी अपनी टाँग या बाजू हिला भी नहीं सकते । कई बार टाँग सीधी रखने के लिए, टाँग को खींच कर पैर के साथ दस -पंद्रह किलोग्राम का वजन बाँध दिया जाता है ।
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सर्जन चीर-फाड़ करके अन्दर की गन्दी नाड़ियां काटकर एक तरफ फैंक देते हैं । कैंसर के मरीजों के बीमार अंगों में से ऐटमी किरणे गुजारी जाती हैं, जिनसे रोगी तडपता है । डॉक्टर की यह सारी कार्यवाही निर्दयता और ज़ुल्म की सूचक है या दया और रहम की ? डाक्टर की रोगी के साथ दुश्मनी नहीं होती । वह रोगी को स्वस्थ करना चाहता है, जिसके लिये मरीज़ को कडवी दवाईयाँ पिलाता है, भूखा-प्यासा रखता है और बहुत सख्त परहेज़ करवाता है ।
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छुरी पर थोड़ी सी मैल लगी हो तो उसे मिट्टी के साथ रगड़ लेते हैं । उस पर मोटा जंग लग जाये तो उसे सान पर लगाया जाता है । सान छुरी को सजा देने के लिए नहीं, इसका जंग उतारने के होती है । सुनार सोने की कुठाली में गलाकर पहले उसकी मैल निकालता है, फिर उससे मनमर्जी के गहने बनाता है । नरक सजा-घर नहीं, सुधार-घर है । ये मन-आत्मा पर चढी घोर पापों की मैल जलाने के लिए है ।
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जैसे टी बी सैनेटोरियम विशेष पहाडी इलाकों में बनाए जाते हैं, उसी तरह नरक वे अर्ध-सूक्ष्म मण्डल हैं, जिनमें से आत्माओं को अनेक तरह की कठिन यातनाओं में से गुज़ार कर, उन पर चढी पापों की गन्दगी को उतारा जाता है । ऐसा करने का उद्देश्य सजा देना नहीं, आत्मा को साफ़ करना होता है ताकि यह दोबारा अपने निर्मल प्रकाश में कर्म करने के काबिल बन जाये । आत्मा अमर है । इसे न पानी गला सकता है, न तलवार काट सकती है और न ही अग्नि जला सकती है ।
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उस पिता-परमात्मा ने अपनी रहमत से ऐसा कुदरती प्रबन्ध कर दिया है कि आत्माओं की सफाई या सुधार का काम निरन्तर चलता रहता है । निर्दयी और जालिम हम है जो अपनी आत्मा पर घोर पापों के पर्दे चढ़ाकर इसके प्राक्रतिक प्रकाश पर गन्दगी की परतें बढाते चले जा रहे हैं । एक दयालु डाक्टर, सर्जन या सुनार की तरह वह पिता - परमात्मा इसको निरन्तर साफ़ करता रहा है ।

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