शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

= १९८ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू शब्दैं बँध्या सब रहै, शब्दैं ही सब जाइ ।
शब्दैं ही सब ऊपजै, शब्दैं सबै समाइ ॥ 
दादू शब्दैं ही सचु पाइये, शब्दैं ही संतोंख ।
शब्दैं ही सुस्थिर भया, शब्दैं भागा शोक ॥
दादू शब्दैं ही सूक्ष्म भया, शब्दैं सहज समान ।
शब्दैं ही निर्गुण मिले, शब्दैं निर्मल ज्ञान ॥
दादू शब्दैं ही मुक्ता भया, शब्दैं समझे प्राण ।
शब्दैं ही सूझे सबै, शब्दैं सुरझे जाण ॥
*(श्री दादूवाणी ~ शब्द का अंग)*
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@Yog Shaurya ~
- एक बार रामकृष्ण अपने सत्संग में कह रहे थे कि ओंकार के नाद से बड़ी उपलब्धि होती है । वहां बैठे एक शास्‍त्र ज्ञानी को इससे बड़ी अड़चन हुई । क्योंकि ज्ञानी जानता था कि रामकृष्ण कम पढ़े-लिखे हैं, शास्त्र का तो कुछ पता नहीं है, हांक रहे हैं; संस्कृत तो आती नहीं, कुछ भी कहे चल जा रहे हैं ! वह अपना ज्ञान दिखाना चाहता था।
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उसने कहा, ठहरें ! शब्दों में क्या रखा है ? ओंकार तो केवल एक शब्द है, इसमें रखा क्या है ? किसी शब्द में इतनी शक्ति कैसे हो सकती है कि उससे आत्मज्ञान प्राप्त हो जाये ? रामकृष्ण ने उसकी तरफ देखा, चुप बैठे रहे । वह और जोर-जोर से शास्त्रों के उल्लेख करने लगा और उद्धरण देने लगा । कोई आधा घंटा बीत गया, तब रामकृष्ण एकदम से चिल्लाये: "चुप, उल्लू के पट्ठे ! बिलकुल चुप ! अगर एक शब्द बोला आगे तो ठीक नहीं होगा ।"
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"उल्लू के पट्ठे" तो मैं कह रहा हूं, रामकृष्ण ने ज्यादा वजनी गाली दी । तो रामकृष्ण कोई छोटी-मोटी बकवास नहीं मानते थे; वे जब गाली देते थे तो बिलकुल नगद ! वह आदमी घबड़ा गया, तमतमा गया एकदम ! क्रोध भर गया आंख में ! पर कुछ कह ना सका क्योंकि वहां ज्यादातर रामकृष्ण के शिष्य थे, झगड़ा हो सकता था ।
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फिर, रामकृष्ण फिर अपना समझाने लगे कि ओंकार…। कोई पांच-सात मिनट बाद उस आदमी की तरफ देखा और कहा, महानुभाव ! माफ करना । वह तो मैंने सिर्फ इसलिए कहा था कि देखें "शब्द" का असर होता है कि नहीं ! तुम तो बिलकुल पसीना-पसीना हुए जा रहे हो, मरने-मारने पर उतारू हो । वह तो यह कहो कि लोग मौजूद हैं, नहीं तो तुम मेरी गर्दन पर सवार हो जाते । जरा सोचो तो जब "उल्लू के पट्ठे" शब्द का इतना असर है तो ओंकार का कितना होगा ? ------osho

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