शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

*= चतुर्थ बिन्दु = दादूजी के पौष्यपिता लोधीराम का देहान्त =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ चतुर्थ बिन्दु ~*
*= दादूजी के पौष्यपिता लोधीराम का देहान्त =*
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आबू पर्वत पर निवास के समय ही दादूजी के पौष्यपिता लोधीराम नागर का देहान्त हो गया था और उनके साथ ही उनकी धर्मपत्नी बसीबाई भी सती हो गई थी । आपके माता पिता विमान द्वारा स्वर्ग को जा रहे थे तब दादूजी ने आकाश मार्ग से जाते हुये उनको अपनी दिव्य दृष्टि से देखा ।
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तब ज्ञानदास, माणकदास ने पूछा - प्रभो ! आपने आकाश की ओर दृष्टि करते हुये बड़ी तत्परता से क्या देखा ? दादूजी ने कहा - इस शरीर का पालन पोषण करने वाले माता पिता दोनों अपने शरीर को त्याग कर स्वर्ग को जा रहे हैं, उन्हीं के विमान को मैंने देखा था । फिर ज्ञानदास माणकदास के पूछने पर अपना पूर्व वृतान्त भी उन दोनों को सुनाया । उसे सुनकर ज्ञानदास माणकदास को अति हर्ष हुआ । ज्ञानदास, माणकदास सौ शिष्यों में हैं ।
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*= ज्ञानदास, माणकदास को केदार देश जाने की आज्ञा =*
आबू पर्वत पर ही ज्ञानदास, माणकदास को दादूजी महाराज ने कहा - अब तुम अच्छे योगी संत हो गये हो, इससे केदार देश टापू में जाकर वहां के लोगों की हिंसा छुड़ाने का प्रयत्न करो । वहां के लोग देवी को इष्ट मानकर देवी को पशु बलि देने के रूप में महान् हिंसा करते हैं ।
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उस देश में एक धर्या जैमल और दूसरा पद्मसिंह दो राजा राज करते हैं । धर्या जैमल तुम्हारे उपदेश से देवी की हिंसामय उपासना छोड़ भगवद् भक्त हो जाने से अहिंसक बन जायगा । फिर वह अपनी प्रजा को भी भगवद् भक्ति द्वारा अहिंसक बना लेगा । पद्मसिंह हिंसामय देवी की उपासना नहीं छोड़ेगा । तब धर्या जैमल और उसकी प्रजा तुमको कहेगी, किसी प्रकार भी पद्मसिंह और उसकी प्रजा भी अहिंसक बननी चाहिये ।
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तब तुम राजा प्रजा सहित मेरे से प्रार्थना करोगे उस समय मैं आकर पद्मसिंह को और उसकी प्रजा को अहिंसक बना दूंगा । अब तुम केदार देश के लिये प्रस्थान करो और मैं भी हरि आज्ञानुसार राजस्थान में जाता हूं । तुम निरंतर निर्गुण ब्रह्म कि भक्ति करते रहना । अब से पांच वर्ष व्यतीत होने पर तुमको सिंधु के पास योगीराज गोरक्षनाथजी के दर्शन भी होंगे ।
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इस प्रकार आदेश देकर ज्ञानदास, माणकदास को केदार टापू का मार्ग बता दिया । फिर दोनों गुरु भाइयों ने गुरुदेव साष्टांग दंडवत प्रणाम सत्यराम बोलकर किया । फिर केदार देश टापू को चल दिये । ये दोनों गुरु भाई निरंतर निर्गुण भक्ति करते हुये भिक्षा अन्न से निर्वाह करते थे तथा अधिकारानुसार लोगों को ज्ञान भक्ति आदि का उपदेश करते थे । इस प्रकार गुरु आज्ञानुसार शनैः शनैः केदार देश के बताये हुए मार्ग से आगे बढ़ रहे थे और समुद्र के पास पहुँच गये थे ।
(क्रमशः)

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