#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सुन्दर सद्गुरु सहज में, कीये पैली पार ।
और उपाय न तिर सके, भव सागर संसार ॥
संसार सागर महा दूस्तर,
ताहि कहि अब को तिरे ।
जे कोटि साधन करे कोउ,
वृथा ही पच पच मरें ॥
जिनि बिना परिश्रम पार कीये,
प्रकट सुख के धाम हैं ।
दादूदयालु प्रसिद्ध सद्गुरु,
ताहि मोर प्रणाम हैं ॥
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साभार : बिष्णु देव चंद्रवंशी --||●||●|| संसार ||●||●||--
संसार शोक - सागर ही है आत्म - ज्ञानी ही इसे पार कर सकता है.... विचार - दृष्टि से देखा जाय तो संसार में सुख का लेश - मात्र भी नहीं है। यहाँ सुख की भावना करना ऐसा ही है, जैसे ससुराल की गाली सुनकर प्रसन्न होना। गाली तो गाली ही, है, उसमें प्रसन्नता कैसी? परन्तु नहीं, अनिष्ट में भी इष्ट बुद्धि रखने वाले लोग हैं। जैसे नाली में पड़ा हुआ मद्यप नाली में पड़े रहने में ही सुख मानता है कोई उसे हाथ पकड़ कर बाहर निकालना चाहे तो भी प्रयत्न करके वह वहीं पड़ा रहना चाहता है। इसी प्रकार संसार में सुख की भावना करने वालों का हाल है। संसारी पदार्थों में सुख का लेश - मात्र नहीं, संसार तो शोक - सागर ही है। लिखा है कि -
'आचार्यवान् पुरुषो वेद'अर्थात्, आचार्यवान् को ही ज्ञान होता है।
'धन्वान् पुरुषो वेद' पुत्रवान् पुरुषो वेद' स्त्रीवान् पुरुषो वेद' आदि यह नहीं कहा।
इसलिये शोक - सागर, संसार - सागर पार होने के लिए आत्म - ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।
!! श्री कृष्ण हरी !!

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