सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

*= ज्ञान, माणक का केदार देश को जाना =*

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ चतुर्थ बिन्दु ~*
*= ज्ञान, माणक का केदार देश को जाना =*
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इधर केदार देश राजा धर्या जैमल की राजसभा के एक पंडित को ६ मास पहले ही भविष्य में होने वाली घटना का पता लग जाता था । उसने राजा को ज्ञानदास, माणकदास के केदार देश टापू में आने की बात ६ मास पूर्व ही बतादी । उसने कहा - वे दोनों व्यक्ति भरत खंड के सिंधु के उत्तरी घाट से इस टापू में प्रवेश करेंगे ।
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पंडित की बात सुनकर राजा ने ज्ञान, माणक को रोकने का पूर्ण प्रयत्न भी किया था किंतु अब ज्ञान, माणक को भी योग द्वारा अनेक शक्तियाँ प्राप्त हो गई थीं । अतः वे राजा के प्रबन्ध से नहीं रुक सके । अपनी योग शक्तियों द्वारा उस टापू में प्रवेश करके अहिंसात्मक ईश्वर भक्ति का प्रचार करने लगे ।
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उनके उस प्रचार को रोकने के लिये भी राजा ने बहुत प्रयत्न किया परन्तु जो भी राजा का मनुष्य उनको दबाने और उनका प्रचार रोकने उनके पास जाता था वहीँ उनके प्रभाव से प्रभावित होकर उनका ही भक्त बन जाता था । इस प्रकार उनका प्रचार उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया ।
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धर्या जैमल के मन्त्री आदि अनेक राज कार्य करने वाले उनके अनुयायी हो गये । अन्त में धर्या जैमल ने भी उनका उपदेश मान लिया । केदार देश की कथा ज्ञानदास, माणकदास की 'परिचयी' नाम से विस्तार से रामदासजी नामक संत ने लिखी है । अधिक देखना हो तो वह ग्रंथ देखो ।
(क्रमशः)

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