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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१३१. केवल विनती । त्रिताल ~
http://youtu.be/L1LlzqhvS0I
हमारे तुम ही हो रखपाल ।
तुम बिन और नहीं को मेरे,
भव - दुख मेटणहार ॥टेक॥
वैरी पंच निमष नहिं न्यारे,
रोक रहे जम काल ।
हा जगदीश ! दास दुख पावै,
स्वामी करहु सँभाल ॥१॥
तुम्ह बिन राम दहैं ये द्वन्दर,
दसौं दिशा सब साल ।
देखत दीन दुखी क्यों कीजे,
तुम हो दीन - दयाल ॥२॥
निर्भय नाम हेत हरि दीजे,
दर्शन पर्सन लाल ।
दादू दीन लीन कर लीजे,
मेटहु सब जंजाल ॥३॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें केवल विनती कर रहे हैं कि हमारे तो हे परमेश्वर ! आप ही रक्षा और पालन करने वाले हो । और दूसरा आपके बिना हमारा संसार में जन्म - मरण रूप दुःख मेटने वाला कोई नहीं है ।
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हे नाथ ! ये काम, क्रोध आदि या शब्द - स्पर्श रूप बैरी एक क्षण भी अन्तःकरण से अलग नहीं हो रहे हैं । ये ही हमारे यम रूप काल बनकर आपसे मिलने के मार्ग में रुकावट डाल रहे हैं । हे स्वामी ! हे जगदीश ! हम आपके दास इनसे दुःखी हो रहे हैं । आप ही हमारी रक्षा करो ।
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आपके बिना हे राम ! यह राग - द्वेष आदि द्वन्द्व हमको दुखी कर रहे हैं । दशों - दिशाओं में, इनका ‘साल’ कहिये दुःख हमको व्याप रहा है । हे नाथ ! आप देखते हुए भी हम दीनों को इनसे दुःखी क्यों करते हो ?
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आपके नाम - स्मरण में हमको प्रीति देकर इनसे निर्भय कीजिये । हे लाल ! हे प्यारे परमेश्वर ! इस प्रकार हमको आप अपना दर्शन देकर अपने में अभेद करिये । हे नाथ ! हमतो आपके दीन गरीब जन हैं । आप हमारे सम्पूर्ण मायिक जाल को निवारण करके अब अपने स्वरूप में लीन कर लीजिये ।
(क्रमशः)
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