बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

= १३६ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू खोजि तहॉं पीव पाइये, सबद ऊपने पास ।
तहॉं एक एकांत है, जहॉं ज्योति प्रकास ॥
दादू खोजि तहॉं पीव पाइये, जहँ बिन जिह्वा गुण गाइ ।
तहँ आदि पुरुष अलेख है, सहजैं रह्या समाइ ॥
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साभार : अशोकानंद भरद्वाज ~
हम सदा अपने जीवन में आनंद ही खोजते रहते हैं ! खोजना भी चाहिए ! एक प्रकार का आनन्द तो वह है जो वास्तव में हो न, पर अज्ञान के कारण शुरू में दिखलाई पड़ता हो और जिसका अंत अंततः दुःख ही निकलता हो ! इस प्रकार के आनंद के मार्ग को जीवन में अपनाना 'प्रेय मार्ग' को अपनाना कहलाता है ! आसान शब्दों में इसमें सभी दुर्व्यसन शामिल हैं !
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दूसरा मार्ग आनंद का जो आत्मा के 'सत-चित-आनंद' भाव से पोषित होता है उसे शास्त्रों में 'श्रेय मार्ग' बतलाया गया है जिसमें शामिल है वो जो सब के लिए हितकारी होता है, फिर चाहे वह व्यक्तिगत रूप से अनुकूल हो या न हो। जो भी अपने रिश्ते-नातों के लिए जीता है, या पूरे राष्ट्र वा पूरे विश्व के लिए ही जीता है, वह अपनी व्यक्तिगत अनुकूलता और प्रतिकूलता की परवाह किए बिना इस विकल्प को स्वीकारता है, जो सब के लिए कल्याणकारी होता है।
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कठोपनिषद् यह उद्धोष करता है कि जो श्रेय मार्ग का अनुसरण करता है, वह शीघ्र ही अच्छे मूल्यों से युक्त होता है। वह अपने आपको ईश्वर का कृपापात्र जानकर धन्य होता है। यह पथ उसे अन्ततः अपने स्वस्वरूप के ज्ञान की और ले जाता है।

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