गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

#daduji 
शब्दों माहिं राम धन, जे कोई लेइ विचार ।
दादू इस संसार में, कबहुं न आवे हार ॥ 
दादू राम रसायन भर धर्या, साधुन शब्द मंझार ।
कोई पारखि पीवै प्रीति सौं, समझै शब्द विचार ॥ 
शब्द सरोवर सुभर भर्या, हरि जल निर्मल नीर ।
दादू पीवै प्रीति सौं, तिन के अखिल शरीर ॥ 
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@बिष्णु देव चंद्रवंशी ~
दान के समान अन्य कोई सुहृद नहीं है और पृथ्वी पर लोभ के समान कोई शत्रु नहीं है। शील के समान कोई आभूषण नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है॥
___________________________श्री कृष्ण हरी !!

दुःख का अनुभव करने के बाद ही सुख का अनुभव शोभा देता है जैसे कि घने अँधेरे से निकलने के बाद दीपक का दर्शन अच्छा लगता है। सुख से रहने के बाद जो मनुष्य दरिद्र हो जाता है, वह शरीर रख कर भी मृतक जैसे ही जीवित रहता है॥
_________________________श्री कृष्ण हरी !!

कुछ न रखने वाले, नियंत्रित शांत, सामान चित वाले, मन से संतुष्ट मनुष्य के लिए सभी दिशाए शुखमय होता है॥
__________________________श्री कृष्ण हरी !!

अन्न दान परम दान है, अतः विद्या दान उससे भी बड़ा है क्योंकि अन्न से क्षण भर की तृप्ति होती है और विद्या से आजीवन॥
_________________________श्री कृष्ण हरी !!

बाजुबंद पुरुष को शोभित नहीं करते और न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न चन्दन, न फूल और न सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं। केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई एक वाणी ही उसकी सुन्दर प्रकार से शोभा बढ़ाती है। साधारण आभूषण नष्ट हो जाते हैं, वाणी ही सनातन आभूषण है॥
_________________________श्री कृष्ण हरी !!

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