शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

= १०९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
देह निरंतर शून्य ल्यौ लाई, 
तहं कौण रमे कौण सूता रे भाई ॥
दादू न जाणै ये चतुराई, 
सोइ गुरु मेरा जिन सुधि पाई ॥
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Mohan Sharma ~
मै ज्योतियोँ की भी ज्योति हुँ । तु मेरे प्रकाश रूप को अपने इन बाहरी नेत्रोँ से नहिँ देख सकता - वो आँख तो कोई और है। वह बाहर नहीँ, अंतर्जगत में खुलती है। इसे ही "दिव्य दृष्टि" या "तीसरा नेत्र" कहा जाता है - 
भगवान श्री कृष्ण

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