#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
देह निरंतर शून्य ल्यौ लाई,
तहं कौण रमे कौण सूता रे भाई ॥
दादू न जाणै ये चतुराई,
सोइ गुरु मेरा जिन सुधि पाई ॥
================
Mohan Sharma ~
मै ज्योतियोँ की भी ज्योति हुँ । तु मेरे प्रकाश रूप को अपने इन बाहरी नेत्रोँ से नहिँ देख सकता - वो आँख तो कोई और है। वह बाहर नहीँ, अंतर्जगत में खुलती है। इसे ही "दिव्य दृष्टि" या "तीसरा नेत्र" कहा जाता है -
भगवान श्री कृष्ण

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें