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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ पंचम बिन्दु ~*
*= मोरडा का वृक्ष हरा करना =*
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दादूजी बोले -
*"दादू सूखा रुखड़ा, काहे न हरिया होय ।*
*आपे सींचे अमीरस, सुफल फलिया सोया ॥"*
अर्थ - प्रभो ! यह संतो को आश्रय देने वाला वृक्ष सूखा हो तो है, किंतु आप इस पर अपनी कृपा रूप - रस सींचें तो यह क्यों नहीं हरा होगा, अर्थात् अवश्य हो जायगा । इस प्रार्थना पर वह वट वृक्ष उसी समय हरा हो गया तथा सुन्दर फलों से भी युक्त हो गया ।
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इस घटना को उसी गाँव के एक सज्जन ने प्रत्यक्ष देखा था, उसी ने जाकर ग्राम में सब को सुनाया । तब ग्राम के लोग दौड़ दौड़ कर बहुत से आये और वहां निवास करने की बहुत आग्रह पूर्वक प्रार्थना की । संत तो दयालु होते ही हैं, कुछ समय के लिये वहां ठहर गये ।
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वैशाख मास में वह तालाब सूख गया । तब वहां पानी की कमी हो गई । उन्हीं दिनों में एक संत दादूजी के पास कुछ दिन मोरड़ा ग्राम में सत्संग करके लोहारगल तीर्थ को गया और वहां के निवासी स्वामी माधवानन्दजी के पास जाकर कहा - स्वामीजी ! मैंने मोरड़ा ग्राम में एक दादूजी नामक महात्मा का दर्शन किया और उन के अमृत वचनों को कुछ दिन वहां रहकर श्रवण किया ।
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उनके सत्संग से मुझे बहुत लाभ हुआ । संत तो वे बहुत अच्छे हैं, पूर्ण भजनानन्दी हैं । किन्तु उनमे एक कमी अवश्य थी । माधवानन्दजी ने पूछा - वह क्या ? संत ने कहा - आचार की कमी है । वे त्रिकाल स्नान नहीं करते हैं और भिक्षा का ही अन्न पा लेते हैं, स्वच्छता से बनवाकर पाने का प्रयत्न नहीं करते । विशेष रूप से पवित्रतारूप आचार पद्धति का पालन नहीं करते ।
(क्रमशः)

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