#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
आड़ा दे दे राम को, दादू राखै मन ।
साखी दे सुस्थिर करै, सोई साधू जन ॥
सोई शूर जे मन गहै, निमख न चलने देइ ।
जब ही दादू पग भरै, तब ही पकड़ि लेइ ॥
https://youtu.be/wCVVmCx_mBQ
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साभार : पँ. शिवप्रसाद त्रिपाठी 'आचार्य'
मन वचन और काया से किसी को भी पीड़ा न देना ही यज्ञ है जो बिना कारण ही दिल जलाता है, वह आत्मघात कर रहा है सदा सर्वदा प्रसन्न रहना भी यज्ञ ही है ।
सत्कर्म के बिना चित्तशुद्धि नहीँ होती और चित्तशुद्धि के ज्ञान नहीँ टिकता । सत्कर्म से सभी इन्द्रियाँ शुद्ध होगी । जिसका मन कलुषित है, उसे परमात्मा का अनुभव नहीँ हो सकता ।
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मानव शरीर एक गगरी है इसमेँ नौ छिद्र हैँ यदि गगरी छिद्र वाली है तो उसे कभी भरा नहीँ जा सकता । प्रत्येक छिद्र से ज्ञान बह जाता है । ज्ञान प्राप्त होना कठिन है ज्ञान आता तो है किन्तु वह रह नही पाता विकार वासना के वेग मे वह कई बार बह जाता है ।
वैसे तो सबकी आत्मा ज्ञानमय है, अतः अज्ञानी तो कोई नहीँ है किन्तु ज्ञान को सतत् बनाए रखने हेतु इन्द्रियोँ के द्वारा बही जाती हुई बुद्धि शक्ति को रोकना है ज्ञानी इन्द्रियोँ के विषय की ओर नहीँ जाने देता जबकि वैष्णव इन्द्रियोँ को प्रभु के मार्ग की ओर मोड़ता है ।
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ज्ञान टिक नहीँ पाता, क्योँकि मनुष्य का जीवन विलासी हो गया है । सारा का सारा ज्ञान पुस्तक मेँ ही पड़ा रहता है, मस्तक मेँ जाता ही नहीँ । जो पुस्तकोँ के पीछे दौड़े वह विद्वान है और जो भक्तिपूर्वक परमात्मा के पीछे दौड़े वह सन्त है । विद्वान शास्त्र के पीछे दौड़ता है जबकि शास्त्र संत के पीछे दौड़ते हैँ । शास्त्र पढ़कर जो बोले वह विद्वान है, प्रभु को प्रसन्न करके उसी मेँ पागल होकर जो बोलता है वह सन्त है ।
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गीता मेँ भगवान ने अर्जुन से कहा है > अर्जुन ! ज्ञान तो तुझी में है । हृदय मेँ सात्विक भाव जाग्रत हो, मन शुद्ध हो जाय तो हृदय मेँ ज्ञान अपने आप ही प्रकट होता है । ज्ञान का शत्रु है हिरण्याक्ष अर्थात् लोभ । ज्ञान को बुद्धि मेँ स्थिर रखना है तो हिरण्याक्ष रुपी लोभ को मारना होगा । अपने मन से पूछो कि मुझे जो सुख सम्पत्ति मिली है, उसके लिए मैँ पात्र भी हूँ या नहीँ ।
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उत्तर नकारात्मक ही होगा । लोभ को संतोष से मारना चाहिए । ज्यादा पाने की इच्छा नही करना चाहिए । पाप इसलिए होता है कि मनुष्य मानता है कि प्रभू ने मुझे जो दिया है वह बहुत कम है । पाप नहीँ होगा तो इन्द्रियोँ की शुद्धि होगी और तभी इन्द्रियोँ मेँ ज्ञान-भक्ति टिक पायेगी । यज्ञादि सत्कर्म से चित्त शुद्धि होगी तभी ब्रह्मज्ञान बुद्धि मेँ टिक पायेगा !!!
स्वान्तः सुखाय ************
श्रीहरिशरणम ************

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