गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सबही मृतक ह्वै रहे, जीवैं कौन उपाइ ।
दादू अमृत रामरस, को साधू सींचे आइ ॥
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
https://youtu.be/rJ5_rndMlx8
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My Lord! I'm Yours and only yours (नाथ मैँ थारो जी थारो!!)
सत्संग और महात्माओं का प्रभाव -१२
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गत ब्लॉग से आगे….. महात्माओं के पहचानने की एक साधारण युक्ति यह है की जैसे अग्नि के समीप जाने से जानेवाले पर अग्नि का कुछ-न-कुछ प्रभाव जरुर पड़ता है, वैसे ही महात्मा के समीप जाने से महात्मा का प्रभाव पड़ता है । जैसे सरकार के किसी सिपाही को देखने से सरकार की स्मृति होती है, वैसे ही भगवान् के भक्त के दर्शन से भगवान् की स्मृति होती है । जिसका सँग करने से अपने में दैवी सम्पदा के लक्षण आवे, जिसके सँग से, जिसके साथ वार्तालाप करने से, दर्शन से, स्पर्श से आत्मा का सुधार हो, अपने में भक्तों के लक्षण प्रगट होने लगे, गुणातीत पुरुषों के लक्षण आने लगे तो समझना चाहिये की यह महापुरुष है ।
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जब हम महापुरुषों का सँग करने के लिए जाय तो हम यह समझे की हम ज्ञान के पुन्ज् के सम्मुख जा रहे है । जैसे सूर्य के सम्मुख जाने से अन्धकार तो दूर भाग ही जाता है, किन्तु अधिक-से-अधिक प्रकाश होता चला जाता है । हम देखते है की जब प्रात:काल सूर्य उदय होता है, तब ज्यों-ज्यों सूर्य नजदीक आता है त्यों-ही-त्यों सूर्य के प्रकाश का अधिक असर पड़ता है । वैसे ही हम जितने ही महात्माओं के समीप होते है, उतना ही हमको अधिक लाभ मिलता है । वे एक ज्ञान के पुंज है, उस ज्ञानपुंज से हमारे अज्ञानान्धकार का नाश होकर हमारे ह्रदय में भी ज्ञान-सूर्य का प्रागटय होता है ।....
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- श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, 
साधन-कल्पतरु पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

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