शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

= १४९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
आदि अंत लौं आय कर, सुकृत कछू न कीन्ह ।
माया मोह मद मत्सरा, स्वाद सबै चित दीन्ह ॥
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साभार : Ritesh Srivastava ~
जब तक मन में मोह है तब तक सत्य की प्राप्ति कठिन है ॥हरी ॐ॥
एक बहुत मशहूर संत थे उनके पास रोज बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने दूर दूर से आते थे. एक बार एक भीखारी भी उनसे मिलने आया. यहाँ पहुँच कर उसे बड़ा अटपटा लगा कि कहने को तो संत बड़े फकीर हैं, मगर वे जिस आसन पर बैठे हैं, वो सोने का बना हुआ है. चारों और सुगंधित चीजों से वातावरण महक रहा था. सुंदर परदे लगे थे रेशमी रस्सियो की सजावट देखते ही बनती थी. रस्सियों के नीचे सोने के घुँघरू बँधे हैं जो जमीन तक आ रहे हैं हवा चलती है तो रस्सियां हिलती हैं और उनके घुँघरू बज उठते. कुल मिलाकर हर तरफ वैभव विलास का साम्राज्य है.
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संत अपने यहाँ पधारे उस भीखारी के सम्मान मैं कुछ कहते इससे पहले ही वह बोल उठा, उसका कहना था मैं आपकी फकीराना ख्याति सुनकर दर्शन करने आया था, लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ कि आप तो भौतिक सुख संपदा के बीच मजे से रह रहे हैं. संत उसकी बातें सुनकर शांत भाव से बोले यदि तुम्हें आपत्ति है तो मैं इसी पल सारा वैभव छोड़कर तुम्हारे साथ चलने को तैयार हो जाता हूँ. भीखारी के हामी भरने पर संत तुरंत सब कुछ छोड़कर उसके साथ बाहर निकल पड़ा. 
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दोनों पैदल कोई ढाई कोस ही चले होंगे कि अचानक भीखारी वापस पीछे मुडा तो संत ने उससे इसकी वजह पूछी तो वह कहने लगा वह आपके घर पर अपना कांसा(कटोरा) भूल आया है उसे लेना जरूरी है. इसलिए वापस लौटना होगा. यह सुनकर संत बोले बस यही बात है, मैं तुम्हारी एक आवाज पर अपनी सारी संपदा पलभर मे छोड़कर आ गया, मगर तुम एक कांसे का मोह भी अपने मन से नहीं निकाल पाए. मेरे ठिकाने की रेशमी रस्सियां तो माटी तक धँसी थी परंतु कांसे का मोह तुम्हारे मन तक धँसा है यह खतरनाक है. जब तक मन में मोह है तब तक सत्य की प्राप्ति बहुत कठिन है पहले इस मोह से तो छुटकारा पा लो फिर सत्य को प्राप्त करने का विचार करना ॥वन्दे मातरम् ॥

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