शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

= १५० =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
पंच तत्त्व का पूतला, यहु पिंड सँवारा ।
मंदिर माटी मांस का, बिनशत नहिं बारा ॥
हाड़ चाम का पिंजरा, बिच बोलणहारा ।
दादू तामें पैस कर, बहुत किया पसारा ॥
बहुत पसारा कर गया, कुछ हाथ न आया ।
दादू हरि की भक्ति बिन, प्राणी पछताया ॥
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Path of Saints(Sant Marg ) ~ प्रभु भक्ति की प्रेरणा :
तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। वह अपनी पत्नी का विछोड़ा एक दिन के लिए भी सहन नहीं कर सकते थे। एक बार उनकी पत्नी उनको बताए बिना मायके आ गई। तुलसीदास जी उसी रात छिपकर ससुराल पहुँच गए। इससे उनकी पत्नी को बहुत शर्म महसूस हुई।
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वह तुलसीदास जी से कहने लगी, "मेरा शरीर तो हाड-मास का पुतला है। जितना तुम इस शरीर से प्रेम करते हो यदि उससे आधा भी भगवान श्री राम जी से करोगे तो इस संसार के माया जाल से मुक्त हो जाओगे। तुम्हारा नाम अमर हो जाएगा।"
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तुलसीदास के मन पर इस बात का गहरा प्रभाव पड़ा। वह उसी क्षण वहाँ से निकाल पड़े और अपना सब कुछ छोडकर भारत के तीर्थ स्थलों के दर्शन को चल दिए। कहते हैं कि हनुमान जी की कृपा से उन्हें भगवान राम जी के दर्शन हुए और उसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन राम जी की महिमा में लगा दिया।

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