बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

= १३१ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
मन इन्द्री अंधा किया, घट में लहर उठाइ ।
साँई सतगुरु छाड़ कर, देख दिवाना जाइ ॥
इन्द्री के आधीन मन, जीव जंत सब जाचै ।
तिणे तिणे के आगे दादू, तिहुं लोक फिर नाचै ॥
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साभार : @Ramjibhai Jotaniya ~
हनुमान=हनु का अर्थ होता है ग्रीवा, चेहरे के नीचे वाला भाग अर्थात ठोड़ी, मान का अर्थ होता है गरिमा, बड़ाई, सम्मान। इस प्रकार हनुमान का मतलब ऐसा व्यक्ति जिसने अपने मान-सम्मान को अपनी ठोड़ी के नीचे रखा है अर्थात जीत लिया है। जिसने अपने मान-सम्मान को जीत लिया है, उसके प्रभाव से जो मुक्त हो चुका है, वही हनुमान हो सकता है। हनुमान का एक नाम बालाजी है, जिसका तात्पर्य है बालक।
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हमारे ग्रंथों में हनुमान जी को हमेशा बालक ही दिखलाया गया है। बालक के समान निष्कलुष हृदय वाला व्यक्ति ही सम्मान पाने की लालसा से मुक्त रह सकता है और सही अर्थों में ब्रह्माचर्य का पालन कर सकता है।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार भी हनुमान जी ने कभी अपनी शक्ति व सामर्थ्य का गर्व नहीं किया। राम दरबार के चित्र में उन्होंने सबसे नीचे भूमि पर, सेवक वाली जगह पर ही हाथ जोड़े बैठे दिखाया जाता है।
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ऐसे महान चरित्र को वानर के रूप में क्यों चित्रित किया गया ? ऐसा प्रश्न आपके मन में भी जरूर उठता होगा। कहाँ ऐसा महान व्यक्तित्व और कहाँ वानर रूप, जो एक निकृष्ट व उद्दण्ड जानवर माना जाता है। वास्तव में वानर प्रतीक है मनुष्य के अविवेकी व चंचल मन का। हमारा मन वानर के समान ही कभी भी कहीं भी टिक कर नहीं बैठ सकता, अत्यंत ही चलायमान है। और मन का नियंत्रण अत्यंत ही दुष्कर कार्य है। हनुमान पवनपुत्र हैं अर्थात पवन से भी अधिक तेज गति से चलने वाले इस मन के वे पुत्र हैं। अब बताइए, एक तो वानर की उपमा व दूसरी पवन की-दोनों ही अत्यंत चंचल।
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उनको वानराधीश कहने का तात्पर्य यही है कि वे मन रूपी वानर के अधिपति हैं, स्वामी हैं। उनका अपनी चंचल इंद्रियों पर नियंत्रण है। केवल मन का स्वामी ही राम रूपी ईश्वर का सवोर्त्तम भक्त हो सकता है और धर्म के कार्यों में निष्काम भाव से भाग ले सकता है। यहाँ राम का तात्पर्य है उस रमण करने वाले तत्व से जो कि हर जगह समान रूप से व्याप्त है।
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दशरथ नंदन राम तो उसे व्यक्त करने के प्रतीक मात्र हैं। याद रखें कि निष्कामता सभी महान गुणों की जननी है। हनुमान निष्काम गुण की प्रतिमूर्ति हैं, इसीलिए वे कहते हैं,
'रामकाज किए बिनु मोहि कहाँ विश्राम।'
वे पूरी तरह समर्पित हैं राम के प्रति, बिना किसी प्रतिफल की आशा के। यही है निष्काम भक्ति की पराकाष्ठा।
॥ श्रीहनुमत्सहस्त्रनामावलिः ॥
१. ॐ हनुमते नमः ।
२. ॐ श्रीप्रदाय नमः ।
३. ॐ वायुपुत्राय नमः ।
४. ॐ रुद्राय नमः ।
५. ॐ अनघाय नमः ।
६. ॐ अजराय नमः ।
७. ॐ अमृत्यवे नमः।
८. ॐ वीरवीराय नमः ।
९. ॐ ग्रामवासाय नमः ।
१०. ॐ जनाश्रयाय नमः ।
११. ॐ धनदाय नमः ।
१२. ॐ निर्गुणाय नमः ।
१३. ॐ अकायाय नमः ।
१४. ॐ वीराय नमः ।
१५. ॐ निधिपतये नमः ।
१६. ॐ मुनये नमः ।
१७. ॐ पिंगालक्षाय ।
१८. ॐ वरदाय नमः ।
१९. ॐ वाग्मिने नमः ।
२०. ॐ सीताशोकविनाशनायनमः ।
२१. ॐ शिवाय नमः ।
२२. ॐ सर्वस्मै नमः ।
२३. ॐ परस्मै नमः ।
२४. ॐ अव्यक्ताय नमः ।
२५. ॐ व्यक्ताव्यक्तायनमः ।
२६. ॐ रसाधराय नमः ।
२७. ॐ पिंगकेशाय ।
२८. ॐ पिंगरोम्णे ।
२९. ॐ श्रुतिगम्याय नमः ।
३०. ॐ सनातनाय नमः ।
३१. ॐ अनादये नमः ।
३२. ॐ भगवते नमः ।
३३. ॐ देवाय नमः ।
३४. ॐ विश्वहेतवे नमः ।
३५. ॐ निरामयाय नमः ।
३६. ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः ।
३७. ॐ विश्वेशाय नमः ।
३८. ॐ विश्वनाथाय नमः ।
३९. ॐ हरीश्वराय नमः ।
४०. ॐ भर्गाय नमः ।
४१. ॐ रामाय नमः ।
४२. ॐ रामभक्ताय नमः ।
४३. ॐ कल्याणप्रकृतये नमः ।
४४. ॐ स्थिराय नमः ।
४५. ॐ विश्वम्भराय नमः ।
४६. ॐ विश्वमूर्तये नमः ।
४७. ॐ विश्वाकाराय नमः ।
४८. ॐ विश्वपाय नमः ।
४९. ॐ विश्वात्मने नमः ।
५०. ॐ विश्वसेव्याय नमः ।
५१. ॐ विश्वस्मै नमः ।
५२. ॐ विश्वहराय नमः ।
५३. ॐ रवये नमः ।
५४. ॐ विश्वचेष्टाय नमः ।
५५. ॐ विश्वगम्याय नमः ।
५६. ॐ विश्वध्येयाय नमः ।
५७. ॐ कलाधराय नमः ।
५८. ॐ प्लवंगमाय नमः ।
५९. ॐ कपिश्रेष्ठाय नमः ।
६०. ॐ ज्येष्ठाय नमः ।
६१. ॐ वैद्याय नमः ।
६२. ॐ वनेचराय नमः ।
६३. ॐ बालाय नमः ।
६४. ॐ वृद्धाय नमः ।
६५. ॐ यूने नमः ।
६६. ॐ तत्त्वाय नमः ।
६७. ॐ तत्त्वगम्याय नमः ।
६८. ॐ सख्ये नमः ।
६९. ॐ अजाय नमः ।
७०. ॐ अञ्जनासूनवे नमः ।
७१. ॐ अव्यग्राय नमः ।
७२. ॐ ग्रामख्याताय नमः ।
७३. ॐ धराधराय नमः ।
७४. ॐ भूर्लोकाय नमः ।
७५. ॐ भुवर्लोकाय नमः ।
७६. ॐ स्वर्लोकाय नमः ।
७७. ॐ महर्लोकाय नमः ।
७८. ॐ जनलोकाय नमः ।
७९. ॐ तपोलोकाय नमः ।
८०. ॐ अव्ययाय नमः ।
८१. ॐ सत्याय नमः ।
८२. ॐ ओंकारगम्याय ।
८३. ॐ प्रणवाय नमः ।
८४. ॐ व्यापकाय नमः ।
८५. ॐ अमलाय नमः ।
८६. ॐ शिवधर्मप्रतिष्ठात्रे नमः ।
८७. ॐ रामेष्टाय नमः ।
८८. ॐ फ़ाल्गुनप्रियायनमः ।
८९. ॐ गोष्पदीकृतवारीशाय नमः ।
९०. ॐ पूर्णकामाय नमः ।
९१. ॐ धरापतये नमः ।
९२. ॐ रक्षोन्घाय नमः ।
९३. ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः ।
९४. ॐ शरणागतवत्सलाय नमः ।
९५. ॐ जानकीप्राणदत्रेनमः ।
९६. ॐ रक्षःप्राणापहारकाय नमः ।
९७. ॐ पूर्णाय नमः ।
९८. ॐ सत्यायः नमः ।
९९. ॐ पीतवाससे नमः ।
१००. ॐ दिवाकरसमप्रभाय नमः ।
१०१. ॐ देवोद्यानविहारिणे नमः ।
१०२. ॐ देवताभयभयन्जनाय नमः।
१०३. ॐ भक्तोदयाय नमः ।
१०४. ॐ भक्तलब्धाय नमः ।
१०५. ॐ भक्तपालनतत्पराय नमः।
१०६. ॐ द्रोणहर्त्रे नमः ।
१०७. ॐ शक्तिनेत्रे नमः।
१०८. ॐ शक्तिराक्षसमारकाय ।

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