रविवार, 1 फ़रवरी 2015

२०. साधु को अंग ~ १२

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
.
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*तात मिलै पुनि मात मिलै,*
*सुत भ्रात मिलै युवती सिखदाई ।* 
*राज मिलै गज बाज मिलै,*
*सब साज मिलै मन वांछित पाई ॥* 
*लोक मिलै सुरलोक मिलै,*
*बिधिलोक मिलै बैकुण्ठ हि जाई ।*
*सुन्दर और मिलै सब ही सुख,*
*दुर्लभ संत समागम भाई ॥१२॥*
*दुर्लभ सन्त समागत भाई* : संसार में किसी प्राणी को संसार में अच्छे से अच्छा पिता मिल सकता है, माता मिल सकती है, पुनः भाई, स्त्री - सब कुछ मिल सकता है । 
उस को कभी राज्य भी मिल सकता है; हाथी घोड़े, धन सम्पति भी मिल सकती है, यहाँ तक कि सभी कुछ मनोवांछित भोग्य पदार्थ भी मिल सकते हैं । 
उसका इस लोक में भी जन्म हो सकता है, देवलोक में भी जन्म हो सकता है, उसको ब्रह्मलोक भी उपलब्ध हो सकता है । 
*श्री सुन्दरदास जी* महाराज का कथन है कि संसार में अन्य सभी सुख कभी न कभी उपलब्घ होने सम्भव हैं; परन्तु भाई ! सच्चे सन्त का मिलना अत्यधिक कठिन है ॥१२॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें