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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१२४. (गुजराती) विरह विनती । राज मृगांक ताल ~
कब मिलसी पीव गृह छाती,
हौं औराँ संग मिलाती ॥टेक॥
तिसज लागी तिसही केरी,
जन्म जन्म नो साथी ।
मीत हमारा आव पियारा,
ताहरा रंग नी राती ॥१॥
पीव बिना मने नींद न आवे,
गुण ताहरा ले गाती ।
दादू ऊपर दया मया करि,
ताहरे वारणे जाती ॥२॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरु इसमें विरहपूर्वक विनती कर रहे हैं कि हे हमारे प्रीतम परमेश्वर ! इस शरीर के हृदय रूपी घर में, कब हमसे छाती से छाती मिलाकर, मिलोगे ? हम विरहीजन, जब तक आपका दर्शन नहीं पाते, तब तक अपनी छाती ‘कहिये’ सुरति, दुःखों से मिला रहे हैं ।
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हमें तो आपके दर्शनों की ही प्यास लग रही है । क्योंकि आप हमारे जन्म - जन्मान्तरों के साथी हो । हे हमारे मित्र ! आप हमारे हृदय में आओ । हम आपके वारी जाते हैं । हम तो आपके रंग में रंगी हुई हैं ।
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हे प्रीतम ! आपके बिना हम सुख की नींद नहीं सोते । हृदय में आपके गुणों को याद करके, आपका स्मरण करते रहते हैं । अब हम विरहीजनों पर आप दया - मया करो । हम आपके ऊपर बलिहारी जाते हैं ।
(क्रमशः)

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