सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

#daduji
|| दादूराम सत्यराम ||
"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)" लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान |
= पिता का धन परमार्थ में लगाना = 
फिर आप सर्व ऐश्वर्य प्रभु का ही है, ऐसा समझकर, दीन, गरीब आदि की सेवा द्वारा धन प्रभु के ही समर्पण करने लगे | यह कार्य दादूजी के परिवार को अच्छा न लगा, यद्यपि दादूजी के पिता एक अच्छे व्यापारी थे | उनके नाना कारखाने चलते थे | जहाज द्वारा माल इधर उधर आता जाता था, फिर भी दादूजी का अति धन लुटाना रूपकार्य घर वालों को अच्छा नहीं लगा | फिर इनको माता-पिता ने अलग कर देने का विचार किया | 
= माता-पिता का दादूजी को अलग करना = 
माता पिता के अलग करने का परिचय जनगोपालजी ने इस प्रकार दिया है - 
होत पिता के जहाज कमाई, स्वामी हरि की भक्ति चलाई | 
पैसा वस्त्र अन्न भंडारा, मिलैं अतीत लुटावें सारा || ५० || 
माता पिता जुदा कर दिया, स्वामी उनका द्रव्य न लिया | 
करैं भलाई देय खुलावें, पैंड पैंड पर हरि गुण गावें || ५१ || 
(प्रथम विश्राम) 

पिता ने जो भी इनको दिया वही ले लिया | पूर्णरूप से बंटवारे का आग्रह कर के कुछ नहीं लिया | जो लिया वह भी परमार्थ में लगाने लगे | सबके भलाई का कार्य ही करते थे और दीन, गरीब, अतिथि आदि को भोजनादि सप्रेम देते थे, इस प्रकार कुछ समय व्यतीत हुआ |

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