मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग ~ १


॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग* 
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*बैठत रांम हि उठत रांम हि,*
*बोलत रांम हि रांम रह्यौ है ।* 
*जीमत रांम हि पावत रांम हि,*
*ध्यायत रांम हि रांम गह्यौ है ॥* 
*जागतं रांम जा सोवत रांम हि,*
*जोवत रांम हि रांम लह्यौ है ।* 
*देतहु रांम हि लेतहु रांम हि,*
*सुन्दर रांम हि रांम कह्यौ है ॥१॥* 
*सर्वव्यापक राम* : जो बैठते हुए, उठते हुए तथा बोलते हुए भी राम का ही नाम लेता रहता है; 
जो भोजन करते हुए, जल पीते हुए, किसी वस्तु का ध्यान करते हुए भी राम का नाम लेता रहता है । 
जो जागते हुए, सोते हुए एवं किसी की प्रतीक्षा करते हुए भी आम का स्मरण नहीं भूलता । 
*श्री सुन्दरदासजी* कहते हैं - तथा लेन-देन(व्यापार-व्यवहार) करते समय भी राम नाम का स्मरण करता रहता है ॥१॥ 
(क्रमशः)

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