शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

२०. साधु को अंग ~ १७

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
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*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*२०. साधु को अंग* 
*आठौं जांम यम नेम आठौं जांम रहै प्रेम,* 
*आठौं जांम जोग जज्ञ कियौ बहु दान जू ।* 
*आठौं जांम जप तप आठौं जांम लियौ ब्रत,* 
*आठौं जांम तीरथ मैं करत है न्हांन जू ॥* 
*आठौं जांम पूजा बिधि आठौं जांम आरती हू,* 
*आठौं जांम दंडवत सुमिरन ध्यानं जू ।* 
*सुन्दर कहत तिन कियौ सब आठौं जांम,* 
*सोई साधु जाकै उर एक भगवांन जू ॥१७॥* 
*सतत भगवच्चिन्तक ही सच्चा साधु* : जो भक्त आठों पहर यम नियम का आचरण करता है, जो आठों पहर प्रेमा भक्ति में लीन रहता है, तथा आठों पहर योग, यज्ञ दान क्रिया में लगा रहता है । 
जो आठों पहर जप तप, व्रत, तीर्थयात्रा पर्वस्नान आदि में मन लगाये रखता है । 
जो आठों पहर पूजा पाठ, आरती, दण्डवत प्रणाम, नाम - स्मरण, ध्यान आदि में लगा रहता है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - भक्तों के ये आठों पहर के क्रियाकलाप बहुत प्रशंसनीय हैं; परन्तु साधु महात्मा तो वही कहलाता है जिसके हृदय में आठों पहर भगवान् का ध्यान लगा रहता है ॥१७॥ 
(क्रमशः)

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