शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

#daduji
दादू निराकार मन सुरति सौं, प्रेम प्रीति सौं सेव ।
जे पूजे आकार को, तो साधु प्रत्यक्ष देव ॥
दादू भोजन दीजे देह को, लिया मन विश्राम ।
साधु के मुख मेलिये, पाया आतमराम ॥ 
ज्यों यहु काया जीव की, त्यों सांई के साध ।
दादू सब संतोषिये, मांहि आप अगाध ॥ 
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सदाचार -४-

गत ब्लॉग से आगे......गुरु ही सब तीर्थों का सार है और अग्नि सब पवित्र पदार्थों का निचोड़ है । शिष्ट पुरुष के आचरण पवित्र है और गाय की पूछ के बालों का स्पर्श स्पर्श किये हुए पदार्थ पवित्र माने जाते है । अपने परिचितों से मिलने पर उनसे कुशल-समाचार पूछना और प्रात: सांय ब्राह्मणों को प्रणाम करना मनुष्यमात्र का कर्तव्य है । देव-मन्दिरों में, गाय के बीच में, ब्राह्मणों के कर्मों में, वेद-शास्त्रों के स्वाध्याय में और भोजन करते समय द्विजों को दाहिना हाथ ऊपर रखना चाहिये ।

सवेरे-शाम नित्य ब्राह्मणों को विधिपूर्वक पूजन करने से व्यापारियों की व्यापार में उन्नति होती है, किसानों की खेती उत्तम होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है और इन्द्रिय-तृप्तिकारक उत्तम पदार्थ प्राप्त होते है ।

ब्राह्मण को भोजन कराते समय यजमान अन्न परोसकर पूछे की ‘ठीक है न ?’ तब भोजन करने वाला उत्तर दे ‘बहुत ठीक है’ जल देकर कहे ‘तृप्तिकारक है न ?’ तब पीने वाला कहे की ‘सुतर्पण’ (बड़ा तृप्तिकारक है ) । पायस आदि देकर कहे ही ‘अच्छी बनी है न ?’ तब ब्राह्मण कहे की ‘शुश्रुतम’ (अच्छी बनी है ) ।.... शेष अगले ब्लॉग में । 

—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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