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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१२९.(गुजराती) । पंचम ताल ~
तूँ छे मारो राम गुसांई,
पालवे तारे बाँधी रे ।
तुज बिना हूँ आंतरे र - वल्यो,
कीधी कमाई लाधी रे ॥टेक॥
जीवूं जेटला हरि बिना रे,
देहड़ी दुःखे दाधी रे ।
एणे अवतारे कांई न जाण्यूं,
माथे टक्कर खाधी रे ॥१॥
छूटको मारो क्यारे थाशे,
शक्यों न राम अराधी रे ।
दादू ऊपर दया मया कर,
हूँ तारो अपराधी रे ॥२॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें विरहीजनों का भाव दिखा रहे हैं कि हे परमेश्वर राम! आप ही हमारे पति हो । अब तो हम आपके पल्ले बंध गये हैं । अब तक हम आपके बिना अन्यत्र भटक रहे थे । यह मेरे पूर्व कर्मों का ही फल मुझे मिल रहा है ।
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हे हरि ! अब हम आपके दर्शनों के बिना, जब तक जीते रहेंगे, तब तक हमारा शरीर, विरह रूप अग्नि से जलकर संतप्त रहेगा । इस मनुष्य जन्म में हम आपके दर्शन क्यों नहीं पाते हैं ? आपके वियोग में हमने बहुत सी साधक रूपी टक्करें खाई हैं ।
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अब हमारा छुटकारा किस प्रकार होगा ? क्योंकि हम जानते हैं कि आपकी जैसी आराधना करनी चाहिये, वैसी हमने नहीं करी है । हे नाथ ! हम तो आपके अपराधी सेवक हैं । आप ही हम पर दया मया करो ।
(क्रमशः)
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