गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग ~ ३


॥ श्री दादूदयालवे नमः॥ 
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)* 
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व 
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग* 
*भूमि हु रांम हि आपहु रांम हि,* 
*तेज हु रांम हि वायु हु रांमै ।* 
*व्योम हु रांम हि चंदहु रांम हि,* 
*सूरहु रांम हि शीत न घांमै ॥* 
*आदिहु रांमहि अंतुह रांमहि,* 
*मध्य हु रांमहि पुंस न बांमै ।* 
*आज हु रांमहि कालहु रांमहि,* 
*सुन्दर रांमहि म्हां महिं थांमै ॥३॥* 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - उस साधक के लिये भूमि, जल, तेज, वायु एवं आकाश; चन्द्रमा, सूर्य, सर्दी, गर्मी आदि अन्त मध्य बाँयें, या स्त्री पुरुष, आज कल आदि में सर्वदा सर्वत्र श्री सुन्दरदास जी के मतानुसार यहाँ तक कि हम सब में राम ही विराजमान हैं ॥३॥ 
(क्रमशः)

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