#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः॥
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग*
.
*दूरि हु रांम नजीक हु रांम हि,*
*देश हु रांम प्रदेश हु रांमै ।*
*पूरब रांम हि पच्छिम रांम हि,*
*दक्षिन रांम हि उत्तर धांमै ॥*
*आगै हु रांम हिं पीछै हु रांम हि,*
*व्यापक रांम हि है वन ग्रांमै ।*
*सुन्दर रांम दसौं दिसि पूरन,*
*सुरग हु रांम पताल हु तांमै ॥५॥*
वह सर्वव्यापक परमात्मा दूर भी है, समीप भी है, देश में भी है, विदेश में भी है ।
पूर्व में भी पश्चिम में भी है दक्षिण में भी है, उत्तर में भी है । यों वह चारों दिशाओं में व्याप्त हैं ।
वह सर्वव्यापक राम ही आगे, पीछे सर्वत्र व्याप्त है । यहाँ तक सभी वनों एवं ग्रामों में भी वह व्याप्त है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वह सर्वव्यापक राम स्वर्ग एवं पाताल तथा दशों दिशाओं में सर्वत्र व्याप्त है ॥५॥
(क्रमशः)
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*२१. भक्ति ज्ञान मिश्रित को अंग*
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*दूरि हु रांम नजीक हु रांम हि,*
*देश हु रांम प्रदेश हु रांमै ।*
*पूरब रांम हि पच्छिम रांम हि,*
*दक्षिन रांम हि उत्तर धांमै ॥*
*आगै हु रांम हिं पीछै हु रांम हि,*
*व्यापक रांम हि है वन ग्रांमै ।*
*सुन्दर रांम दसौं दिसि पूरन,*
*सुरग हु रांम पताल हु तांमै ॥५॥*
वह सर्वव्यापक परमात्मा दूर भी है, समीप भी है, देश में भी है, विदेश में भी है ।
पूर्व में भी पश्चिम में भी है दक्षिण में भी है, उत्तर में भी है । यों वह चारों दिशाओं में व्याप्त हैं ।
वह सर्वव्यापक राम ही आगे, पीछे सर्वत्र व्याप्त है । यहाँ तक सभी वनों एवं ग्रामों में भी वह व्याप्त है ।
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - वह सर्वव्यापक राम स्वर्ग एवं पाताल तथा दशों दिशाओं में सर्वत्र व्याप्त है ॥५॥
(क्रमशः)

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