शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

= १९६ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
निगुणा गुण मानै नहीं, कोटि करै जे कोइ ।
दादू सब कुछ सौंपिये, सो फिर बैरी होइ ॥
*(श्री दादूवाणी ~ निगुणा का अंग)*
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साभार : @नितिन सिंह via देवदत्त आर्य ~

एक ''राज्य मंत्री'', भ्रष्ट था, उसकी खुशकिस्मति कि वो राजा का साला था ! बहुत शिकायतें मिलने पर भी राजा कुछ नहीं कर पाता ! उसके भ्रष्टाचार को सहन करना भी कठिन हो गया ! राजा बोला तुम बड़े मेहनती हो एक काम करो ! हम तुम को नया काम देते हैँ !
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जाओ आज समुद्र के किनारे बैठ कर लहरेँ गिनो ! राजा का आदेश है काम भी करना है नहीं करते तो जाने क्या हो ! ये भी किसी तरह बडबडाता वहां से निकला और राजा ने भी खैर मनाई कि चलो जान छूटी ! छः महीने हो गये राजा ने सोचा चलो देख आते हैँ ! अगर सुधर गया है तो वापस ले आते हैँ !
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राजा अपनी नाव लेकर चले किनारे से पहले बीस लोगों ने राजा को रोक लिया बोले टैक्स दो ! 
अरे कैसा टैक्स इस राज्य के राजा को जानता हूँ ! यहाँ ऐसा कोई टैक्स नही है !
अरे ये सब राजा के कहने से हो रहा है ! राजा ने ही लहर मंत्री रखा है हम उसके कर्मचारी हैँ ! तुम लहर गिनने मे अडचन पैदा करते हो ! वो देखो बड़े बड़े जहाज टैक्स दे रहे हैँ तुम जिद करोगे तो राजा की बात न मानने के लिये अंदर कर देंगे ! राजा ने माथा पीट लिया !
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कहने का मतलब बस इतना कि ''भ्रष्ट'' को ''सुधारा'' नहीं जा सकता !

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