बुधवार, 4 मार्च 2015

= १८ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
जीव गहिला जीव बावला, जीव दीवाना होइ ।
दादू अमृत छाड़ कर, विष पीवै सब कोइ ॥
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हाथ काम मुखराम है, हिरदे सांची प्रीत l
जन दरिया गृह साधु की, ये ही उत्तम रीत ll
ll सत्य राम सा ll
नमो राम परब्रह्म जी, सतगुरू संत आधार l
जन दरिया वन्दन करे, पल पल वारूं वारि ll१ll
नमो नमो हरिगुरू नमो, नमो नमो सब संत l
जन दरिया वंदन करे, नमो नमो भगवंत ll२ll
(श्री दरियाव जी महाराज की सतगुरु का अंग)
बहुरि पृथ्वीपति होन की, इन्द्र ब्रह्म शिव वोक l
कब देहैं करतार ये, सुन्दर तीनों लोक ll५ll
टीका :--- पुन: उस लोभी पुरुष की पृथ्वीपति होने की इच्छा होती है l इसके बाद उसे इन्द्रलोक, ब्रह्मलोक एंव शिवलोक की चाह(वोक) सताती है l वह धन का अधिपति होना चाहता है l और वह भगवान से दिन रात यही आशा करता है कि वे उसे कब तीनो लोको का अधिपति बना देंगे ll५ll

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