#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू एक विचार सौं, सब तैं न्यारा होइ ।
मांहि है पर मन नहीं, सहज निरंजन सोइ ॥
दादू कोटि अचारिन एक विचारी, तऊ न सरभर होइ ।
आचारी सब जग भर्या, विचारी विरला कोइ ॥
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@सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र -
हे मेरे प्रिय मित्र । संत ह्रदय । श्री @Pannalal Ranga जी ।
सप्रेम वन्दे ।
हम मानें न मानें, पर यह सत्य है कि हम अपनी कई कमजोरियों को स्वीकार नहीं करते। यह अस्वीकृति ही हमारी अशांति का कारण बन जाती है। कई वार हम दूसरों पर टिप्पणी करते हैं कि क्या जानवर जैसा व्यवहार कर रहे हो ?
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विचार करें तो दरअसल में सभी लोग कहीं न कहीं भीतर से पशु तो होते ही हैं । कुछ अपनी पशुता को भीतर रोक लेते हैं, तो, कुछ लोग अपने पशुत्व भाव को बाहर की ओर प्रकट कर देते हैं, लेकिन दोनों ही स्थिति में मनुष्य अपनी पशुता को स्वीकार नहीं करता । हमारे भीतर यह कौन है जो हमें स्वीकार नहीं करने देता ?
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हे मित्र ! यह है हमारा - आपका अहंकार। जैसे ही हम अपने भीतर की पशुता को स्वीकार करते हैं, सबसे पहली चोट हमारे - आपके अहंकार को लगती है । यह सौ टक्के सत्य है । यह अहंकार ही हमें - आपको समझाता है कि हम पशु जैसे नहीं हैं, यह जो बुराई है यह हमारे भीतर दूसरों के कारण है, वरना हम तो श्रेष्ठ ही हैं। जिस दिन हम अपने काम, क्रोध और लोभ को स्वीकार करते हैं, उसी दिन हम इनसे पार जाने की संभावना का निर्माण भी कर लेते हैं।
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पार जाने का अर्थ है - काम, क्रोध और लोभ से मुक्त हो जाना। अपनी कमजोरियों में गहरे उतर जाने से हमारा और उनका परिचय होता है। देख तो हम लेते हैं, पर स्वीकार नहीं करते और जैसे ही स्वीकार किया, बस हम - आप अपनी बुराइयों से मुक्त हो गए । स्वयं से ठगे जाने से मुक्त हो गए । स्वयं की ठगी से बच गए ।
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दूसरे भाई - बंधू हमें जब टोकें तो हम - आप उसे एकदम खारिज न करें, थोड़ा धर्य से विचार करें कि जो टिप्पणी हमारी कमजोरियों पर की जा रही है, उसे भीतर जाकर कहां पकड़ा जाए, कैसे पकड़ा जाये । पकड़ में जरूर आएगी, क्योंकि भीतर कहीं न कहीं है जरूर। इसके लिए थोड़ी देर प्राणायाम-ध्यान का अभ्यास जरूर करें। यही वह मार्ग है जो हमें अपने भीतर ले जाकर कुछ चीजों की खोज में मदद करेगा।हमें अपने पशुत्व से बाहर कर मनुष्यत्व को प्राप्त कराएगा । मंगल हो आपका ।

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