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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ षष्ठ बिन्दु ~*
*= निषेधाज्ञा पश्चात् दर्शन =*
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निषेधाज्ञा के पश्चात् सर्व साधारण का दादूजी के पास जाना रुक गया -
"सब ही सुन दर्शन से रहिया,
भाव धारि दो दर्शन गहिया ॥"
(जनगोपाल)
किन्तु दो श्रीमान् वैश्य सज्जनों के दादूजी के दर्शन करके ही भोजन करने का नियम था । वे दोनों भावूक भक्त दादूजी के दर्शन करने दादूजी के पास गये ।
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दादूजी ने उनको देखकर कहा - तुम लोगों ने निषेधाज्ञा नहीं सुनी क्या ? उन लोगों ने कहा - सुनी है । दादूजी ने कहा - फिर यहां क्यों आये, नहीं आना चाहिये था । व्यर्थ दंड का पांच, पांच सौ आप लोगों को देना पड़ेगा । यहां न आकर वही हजार रुपये किसी पुण्य कार्य में लगाना था । फिर भी आप लोग दंड उस निषेधाज्ञा पत्र को भली प्रकार पढ़कर ही देना, ऐसे नहीं दे देना ।
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उन दोनों सज्जनों में से एक नाम माधव था । वह दादूजी के उक्त वचन सुनकर बोला -
"सत्य वचन कह माधव बोला ।
प्रभु पापिन का झूंठा रोला ॥"
माधव ने कहा - आप का कहना तो सत्य है, हम निषेधाज्ञा पत्र पढ़कर के ही दंड देंगे । किन्तु हमें दंड देना भी पड़े तो भी वे दंड के पांच पांच सौ हम व्यर्थ नहीं समझेंगे ।
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पाँच सौ रूपये में आपके दर्शन और वचनामृत मिले यह तो हमारे लिये सौभाग्य की ही बात है । आपके दर्शन तथा वचन इतने सस्ते कहां पड़े हैं ? पांच सौ तो हमें फिर मिल जायेंगे किन्तु आप तो संत हैं । कल विचर जायें तो फिर आपके दर्शन तथा वचनामृत कहां प्राप्त होंगे ।
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अन्य पुण्य कार्य तो हम फिर भी करते ही रहेंगे । आपकी कृपा से भगवान् ने लक्ष्मी बहुत दी है । अतः हमारे पास जब तक पैसा है तब तक दंड देंगे और आपके दर्शन तथा सत्संग का लाभ लेंगे ही । दूसरी बात यह है, यह हल्ला कुछ ईर्ष्यालु स्वार्थी पंडितों ने और काजियों ने उठाया है । उन लोगों ने आपके विरुद्ध प्रचार करके जनता के हरि विमुख मनुष्यों को साथ लिया है और सरकार से मिले हैं ।
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यहां की सरकार भी मुसलमान होने से हिन्दू संतों की महिमा नहीं सुनना चाहती है । सरकारी अफसर सिकदार को भी उक्त लोगों ने अपने साथ मिलाया है । यह सब षड्यंत्र भी उनका चलना कठिन ही है । अतः हमको आपकी कृपा से कुछ भी हानि होने वाली नहीं है ।
(क्रमशः)

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